Book Title: Jain Darshan
Author(s): Nyayavijay, 
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 394
________________ पंचम खण्ड ३६३ में हुई हो तो भूतकाल का, वर्तमान में होती हो तो वर्तमान काल का और भविष्य में होनेवाली हो तो भविष्यकाल का प्रयोग करने की यह नय सावधानी रखता है । यह नय वस्तु यदि एक होगी तो एकवचन का और अनेक होगी तो बहुवचन का प्रयोग करेगा । [ संस्कृत भाषा में दो के लिये द्विवचन का और दो से अधिक के लिये बहुवचन का प्रयोग करेगा ।] वस्तु का क्रिया के साथ जिस प्रकार का ( कर्ता, कर्म, करण, समप्रदान, अपादान और अधिकरणरूप) कारक - सम्बन्ध होगा उसी के अनुरूप विभक्तियुक्त शब्द प्रयोग करेगा। 'राजा का पुत्र' इसमें राजा के साथ पुत्र का स्वजन - सम्बन्ध, 'राजा का महल' इसमें राजा का महल के साथ स्वामित्व का सम्बन्ध, मिट्टी का घड़ा' इसमें उपादान के साथ का कार्य का सम्बन्ध, 'मेरा हाथ' आदि में तथा 'कुर्सी का पैर आदि में अवयव अवयवी का सम्बन्ध दिखलाया जाता है । ये सब सम्बन्ध छठ्ठी विभक्ति द्वारा बतलाए जाते हैं । 4 यहाँ पर प्रसंगवश यह सूचित कर देना उपयुक्त होगा कि जिस समय जो नय उपयोगी हो उस समय उस नय का प्राधान्य स्वीकार करना ही चाहिए । व्यवहारनय के समय यदि संग्रहनय का प्रयोग करें तो पत्नी, माता, बहन, सेठ, नौकर आदि के बीच भेद ही नहीं रहेगा और अनेक प्रकार का घोटाला होने लगेगा । संग्रहनय के स्थान पर केवल व्यवहारनय का उपयोग किया जाय तो सर्वत्र भिन्नता ही भिन्नता प्रतीत होगी और प्रेमभावना का नाश होकर छीनाझपटी को उत्तेजन मिलेगा । जहाँ शब्द नय की उपयोगिता है वहाँ पर नैगम नय का प्रयोग करने पर जिसमें साधुत्व के लक्ष्ण नहीं है और जो केवल बाह्य साधु-वेषधारी है उसे नैगमनयवाला साधु कहेगा ऐसे अवसर पर मुख्यता शब्द नय की है । अतः किस अवसर पर किस नय का उपयोग उचित होगा इसका विवेकपूर्वक विचार करने की आवश्यकता प्रत्येक अवसर पर होगी ही । किसी बदसूरत पुरुष का नाम सुन्दरलाल और किसी दरिद्र स्त्री का नाम लक्ष्मी रखा गया हो तो भी नैगमनयवाला स्वाभाविकतया उनको उन्हीं नामों से बुलाएगा और शब्दनयवाले को उस तरह बुलाना भले ही अच्छा न लगता हो तो भी ऐसे अवसर पर नैगमनय की मुख्यता होने से नैगमनय का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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