Book Title: Jain Darshan
Author(s): Nyayavijay, 
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 414
________________ पंचम खण्ड ३८३ प्रशंसनीय सहयोग दे सकता है । और इससे अधिक सुन्दर दूसरा हो ही क्या सकता है ? अनेकान्त दृष्टि का एक और विषय-प्रदेश यहाँ उपस्थित किया जाता १. काल किए हुए शुभाशुभ कर्म तत्काल उदय में नहीं आते, किन्तु परिपक्व होने के पश्चात् उदय में आते हैं । अतः कर्म को भी अपना फल दिखाने में काल की अपेक्षा रहती है । कार्य सिद्धि के लिये अनुकूल उद्यम भी सफल होने के लिये थोडा-बहुत समय लेता ही है । आम बोने पर तुरन्त ही फल उत्पन्न नहीं होता। स्टीमर अथवा मोटर चलते ही, अथवा वायुयान उड़ते ही फौरन गन्तव्य स्थान पर नहीं पहुँच जाता । आम की गुठली में आम के पेड़ को उत्पन्न करने का स्वभाव है और उद्यम आदि की अनुकूलता भी है, फिर भी काल की मर्यादा जब तक प्राप्त नहीं होती तब तक गुठली आम नहीं बन सकती । अतः स्वभाव को भी काल की अपेक्षा तो रहती है। शीतकाल में सर्दी पड़े, ग्रीष्म काल में गर्मी पड़े, वर्षा ऋतु में बरसात गिरे, वसंत ऋतु में वृक्ष नवपल्लवित हों, युवावस्था आने पुरुष को दाढी-मूंछ उगे-इस तरह अनेकानेक बातों पर से काल की निमित्त-कारणता का सामर्थ्य हम जान सकते हैं । काल जीवन की घटनाओं में महत्त्वपूर्ण हाथ बँटता है, यह कहे बिना हम रह नहीं सकते । २. स्वभाव चावल बोया हो तो चावल और गेहूँ बोया हो तो गेहूँ ही उत्पन्न होता है, यह महिमा स्वभाव की ही है। इसमें काल की मर्यादा को स्थान अवश्य है, परन्तु बीज के स्वभाव के अनुसार ही फल की सिद्धि होने की । आम की गुठली में आम बनने का स्वभाव है, इसीलिये आम की गुठली बोने पर उद्यम द्वारा कालमर्यादा के अनुसार भाग्यशाली आम प्राप्त कर सकता है । काल, उद्यम आदि होने पर भी स्वभावविरुद्ध कोई कार्य नहीं हो सकता । चेतन-अचेतन के स्वभाव के अनुसार कार्य बना करता है । निःसन्देह स्वभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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