Book Title: Jain Darshan
Author(s): Nyayavijay, 
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 455
________________ ४२४ जैनदर्शन उपसंहार जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्त्रव, संवर, बन्ध, निर्जरा और मोक्ष इन नौ तत्त्वों का; जीवास्तिकाय, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और काल इन छह द्रव्यों का तथा सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र के सहयोगरूप मोक्षमार्ग, गुणस्थान, अध्यात्म, गृहस्थधर्म, न्याय, स्याद्वाद और नय इतनी मुख्य बातों का यथाशक्ति विवेचन इस पुस्तक में किया गया है । तृतीय खण्ड 'प्रकीर्णक' में और चतुर्थ खण्ड 'कर्मविचार' में विविध विचारधारा पाठकों के सम्मुख रखी गई है। अब मेरा कथन समाप्त होता है । अन्त में मेरी एकमात्र अभिलाषा यही है कि इस पुस्तक के पठन के परिणामस्वरूप पाठकों के मन में धर्म एवं तत्त्वज्ञान के बारे में अनेकानेक जिज्ञासाएँ जाग्रत हो जिससे वे महान् पुरुषों के महान् ग्रन्थों का अवलोकन करने के लिये उत्सुक बनें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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