Book Title: Jain Darshan
Author(s): Nyayavijay, 
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 449
________________ ४१८ जैनदर्शन का आन्दोलन विश्वव्यापी हो गया है, परन्तु साम्यवाद के विशुद्ध स्वरूप का प्रचार परिग्रहपरिणाम और लोकमैत्री की समुन्नत उद्घोषणा करके आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ रूप से महावीर ने किया था, यह एक ऐतिहासिक सत्य है । इस तपोनिधि मुनीश्वर ने अपने समय में फैली हुई दास-दासी की कुप्रथा को दूर करने के लिये कठोर तपश्चर्या करके लोगों को समानता का पाठ सिखलाया है । धर्म के नाम पर और स्वर्गादि के प्रलोभन पर फैले हुए अज्ञान कर्मकाण्ड शास्त्रव्यामोह तथा ईश्वरविषयक भ्रामक विचारों के सामने सुसंगत तत्त्वज्ञान उपस्थित करके लोगों की विचार-सुधि को परिष्कृत किया है । इस अहिंसामूर्ति धर्माचार्य ने योगादि कर्मों में धर्म के नाम पर फैली हुई भयंकर पशु-हिंसा का सामना अपने तप एवं चारित्र के असाधारण बल द्वारा वात्सल्यपूर्ण प्रवचन और उपदेश द्वारा करके जबरदस्त क्रान्ति की है। इसके परिणामस्वरूप हिंसारूप रोग के फैलाव पर प्रहार हुआ है और अहिंसा की भावना का प्रचार हुआ है । इस दिशा में उनके समकालीन महर्षि बुद्ध का प्रचारकार्य भी अत्यन्त प्रशंसनीय है । वीरो यदाजायत, भारतस्य स्थितिर्विचित्रा समभूत तदानीम् । मूढक्रियाकाण्डविमोहजाले निबध्यमाना जनता यदाऽऽसीत् ॥२८॥ ~महावीर का जन्म हुआ उस समय भारतवर्ष की स्थिति विचित्र थी । उस समय जनता अज्ञान-कर्मकाण्ड के मोहजाल में फँसाई जा रही थी । 'धर्माग्रणीभि'च जनौ यदाऽन्धश्रद्धावटेऽभूत् परिपायमानः । उच्चब्रूवा नीचपदेऽवगम्य परान् यदानल्पमदूदवंश्च ॥२९॥ -और, जिस समय धर्म के 'ठेकेदार' लोगों को अन्धश्रद्धा के गड्ढे में पटक रहे थे, और जिस समय अपने आपको 'उच्च' माननेवाले दूसरों को 'नीच' समझकर बहुत सता रहे थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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