Book Title: Jain Darshan
Author(s): Nyayavijay, 
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

View full book text
Previous | Next

Page 424
________________ पंचम खण्ड ३९३ परिणाम नहीं आता । उदाहरण के तौर पर विनाइन मलेरिया के बुखार का रामबाण औषध है ऐसा ज्ञान होने पर भी यदि वह औषधरूप से यथोचित मात्रा में न ली जाय अर्थात् उस औषध - ज्ञान को आचरण में न रखा जाय तो बुखार नहीं जा सकता । इसी प्रकार बुखार किससे जाता है इसका ज्ञान न होने पर कोई ऐसी-वैसी चीज दवाई के तौर पर ली जाय तो उससे भी बुखार नहीं जाता । इसी प्रकार आचरण में अनीति, अन्याय, दम्भ का जब तक त्याग नहीं किया जाता तब तक मोक्ष की दिशा में प्रगति नहीं हो सकती ऐसा ज्ञान होने के बावजूद यदि तदनुसार आचरण न किया जाय तो मोक्ष की ओर प्रगति अशक्य हैं । उलटा, जिस ओर जाना है उससे विपरीत दिशा की ओर ही गति होगी । कहने का अभिप्राय यह है कि ज्ञान को क्रिया में - आचरण में रखे बिना अकेला ज्ञान वन्ध्य है अर्थात् फलदायक नहीं होता । इसी प्रकार ज्ञान के सच्चे नेतृत्व के बिना अकेली क्रिया भी निष्फल ही जाती है । अथवा उसका परिणाम विपरीत आता है । I भोजन को देखने और उसकी प्रशंसा करने से भूखे मनुष्य की भूख दूर नहीं होती । उसे अपना हाथ चलाना पड़ेगा उसे खाने की क्रिया करनी होगी । इसी प्रकार महापुरुषों का उपदेश सुन लेने मात्र से काम नही चल सकता; उनके उपदेश सुन लेने मात्र से काम नहीं चल सकता; उनके उपदेश को बराबर समझकर उसे आचरण में रखना पड़ेगा । ईप्सित स्थान के मार्ग की जानकारी, परन्तु उस मार्ग पर चले नहीं तो उस स्थान पर कैसे पहुँचा जा सकता है ? और अज्ञानवश उलटे रास्ते पर चलने लगे तो ? गन्तव्य स्थान तो दूर ही रहेगा, ऊपर से इधर- ऊधर भटकने की तकलीफ पल्ले पड़ेगी । ज्ञान- क्रिया की सुसंगति के बारे में विशेषावश्यकभाष्य में कहा है कि ko kaya हयं नाणं कियाहीणं हया अन्नाणओ किया । पासंतो पंगुलो दड्ढो धावमाणो अंधओ ॥११५९॥ Jain Education International - विशेषावश्यकभाष्यगत आवश्यक नियुक्ति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458