Book Title: Jain Darshan
Author(s): Nyayavijay, 
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 433
________________ ४०२ जैनदर्शन कम्बत अपवाद का भी निर्देश किया जाता है; अर्थात् जिस हेतु को लक्ष में रखकर उत्सर्ग की प्रवृत्ति होती है उसी हेतु को लक्षमें रखकर अपवाद भी प्रवृत्त होता है । दृष्टान्त के तौर पर, जिस तरह मुनि के लिये विशुद्ध आहार ग्रहण करने का उत्सर्ग-विधान संयम के परिपालन के लिये है उसी प्रकार अन्यविध प्रसंग उपस्थित होने पर अर्थात् बीमारी आदि के समय दूसरा उपाय न हो तो अनेषणीय (मुनि के लिये बनाया हुआ होने से उपयोग में न आ सके ऐसा) आहार ग्रहण करने के अपवाद का विधान भी संयम के परिपालन के लिये ही है । इस तरह इन दोनों (उत्सर्ग एवं अपवाद) का हेतु एक ही है । श्री हेमचन्द्राचार्य अपने योगशास्त्र के तृतीय प्रकाश के ८७वें श्लोक की वृत्ति में लिखते हैं कि 'कम्बलस्य च वर्षासु बहिर्निर्गतानां तात्कालिकवृष्टावपकायरक्षणमुपयोगः । बाल-वृद्ध ग्लाननिमित्तं वर्षत्यपि जलधरे भिक्षायै नि:सरतां कम्बलावृतदेहानां न तथाविधाप्कायविराधना । उच्चार-प्रस्त्रवणादिपीडितानां कम्बलावृतदेहानां गच्छतामपि न तथाविधा विराधना ।' . अर्थात्-वर्षाऋतु में बाहर निकले हुए मुनियों के लिये तात्कालिक वृष्टि होने पर जलकाय के जीवों के रक्षण में कम्बल का उपयोग है । बरसते हुए बरसाद में भी बाल, बृद्ध और ग्लान के लिये, भिक्षार्थ निकले हुए मुनियों को, यदि उन्होंने अपने शरीर को कम्बल से बराबर लपेट रखा हो तो जलकाय के जीवों की उतनी विराधना नहीं होती । बारिश में पेशाब अथवा शौच आदि के लिये बाहर जाने पर यदि उनके शरीर कम्बल से आच्छदित हों तो उन्हें विराधना नहीं होती । [पेशाब अथवा शौच की हाजत रोकने का सख्त निषेध है : 'वच्चमुत्तं न धारये' दशवैकालिक, ५-१९.] इस तरह जहाँ एक ओर कच्चे पानी का स्पर्श भी मुनि के लिये निषिद्ध है वहाँ बरसते बरसात में उपर्युक्त प्रयोजन से बाहर जाने का विधान भी है-अपवादरूप से । [कम्बल का सिर्फ यही उपयोग मुनि के लिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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