Book Title: Jain Darshan
Author(s): Nyayavijay, 
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 417
________________ ३८६ उद्योगी पुरुषसिंह का वरण करती है । यद्यपि पुरुषार्थ को काल, स्वभाव आदि की अपेक्षा रहती है, तो भी विजय दिलाने में वह अद्वितीय है । वर्तमान युग में रेलगाड़ी, मोटर, टेलीग्राफ, टेलीफोन, वायरलेस यंत्र, रेडियो, टेलीविजन, एरोप्लेन, अणुशक्ति, १. आरभेतैव कर्माणि श्रान्तः श्रान्तः पुनः पुनः । कर्माण्यारभमाण हि पुरुषं श्रीर्निषेवते ॥ - मनुस्मृति ९ - ३००. जैनदर्शन अर्थात् — मनुष्य पुनः पुनः कार्यपरायण बने । श्री कर्मवीर की ही सेवा करती है । जर्मन विद्वान् शोपनहावर कहता है कि 'Our happiness depends in a great degree upon what we are, upon our individuality.' अर्थात् — हमारा सुख अधिकांशतः हम जैसे हैं उस पर हमारे व्यक्तित्व के ऊपर अवलम्बित है । 'It is a prerogative of man to be, in a great degree, the creature of his own making.' -Burke. अर्थात् — अधिकांशतः अपने प्रयत्न के अनुसार बनने का विशेष अधिकार मनुष्य को मिला है । "The poorest have sometimes taken the highest places; nor have difficulties apparently the most insuperable proved obstacles in their way. Those very difficulties, in many instances, would even seem to have been their best helpers by evoking their powers of labour and endurance, and stimulating into life faculties which might otherwise. have lain dormant.' S. Smile's Self-Help. अर्थात् — अतिदरिद्र मनुष्यों ने भी कभी-कभी सर्वोन्नत स्थान प्राप्त किए हैं । अत्यन्त कठिन दिखाई देनेवाले संकट भी उनके मार्ग में बाधक नहीं हो सके हैं। अनेक उदाहरणों में तो कठिन संकट उनके श्रम एवं सहनशक्ति को जागरित करके तथा शक्तियों को, जो अन्यथा उनके भीतर प्रसुप्त ही पड़ी रहतीं, उद्दीप्त करके उनके श्रेष्ठ सहायक भी बने हैं । 'Slumber not in the tents of your fathers. The world is advancing. Advance with it. ' Mazzini. Jain Education International - तेरे पूर्वजों के डेरे में पड़ा पड़ा मत सो । विश्व आगे बढ़ रहा है । इसके साथ तू भी आगे बढ़ | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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