Book Title: Jain Darshan
Author(s): Nyayavijay, 
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 418
________________ पंचम खण्ड ३८७ हाईड्रोजन शक्ति आदि नए-नए आविष्कार हुए है और दूसरे हो रहे हैं ये सब पुरुषार्थ के ज्वलन्त उदाहरण हैं । पुरुषार्थ दिखलाने वाली प्रजा अथवा व्यक्ति आगे बढ़ता है और उत्कर्ष तथा अभ्युदय को प्राप्त करता है । अकर्मण्य व्यक्ति अथवा प्रजा अपनी निःसत्त्वता के कारण पीछे रह जाती है और दूसरों की पराधीनता स्वीकार के उसे पददलित होना पड़ता है । यहाँ पर यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि उद्यम द्वारा प्राप्त सिद्धि का अपराध नहीं है; अपराध तो उनका दुरूपयोग करनेवाले का है । ५. नियति नियत अर्थात् भाविभाव अथवा भवितव्यता । जो अवश्य भवितव्य - भविष्य में जो अवश्य होनेवाला है वह अवश्य होता है, इस प्रकार नियति का अर्थ किया जा सकता है । अनुकूल परिस्थिति होने पर खेती पककर तैयार हुई, परन्तु पाला गिरने से अथवा टिड्डियों के आक्रमण से अथवा आकस्मिक उपद्रव से यदि खेती नष्ट हो जाय तो यह भवितव्यता ( नियति) का उदाहरण है । फलसिद्धि प्राप्त होने के समय ही बीमारी आ जाय अथवा दूसरा कोई आकस्मिक प्रबल विघ्न उपस्थिति हो जिससे फलसिद्धि रुक जाय तो यह 'नियति' का प्रभाव माना जाता है । सट्टा, लोटरी आदि में बिना परिश्रम के धनी बन जाने का कारण 'नियति' ही माना जाता है । जीव को लेकर विचार करें तो 'नियति' को एक प्रकार का अनिवार्य कर्म कह सकते हैं। इसे जैन परिभाषा में 'निकाचित' कर्म कहते हैं । जो कर्म प्रायः अभेद्य होने के कारण अवश्य (विपाकोदय रूप से ) सुख अथवा दुःख रूप से भुगतना पड़ता है उसे निकाचित कर्म कहते हैं । इस प्रकार के कर्म का फल नियत [ अवश्य भुगतना पड़े ऐसा ] होने से वह नियत अथवा भवितव्यता के नाम से पहचाना जाता है । इस तरह पाँचों कारणों की सत्ता हमने देखी । ये पाँचों ही अपनेअपने स्थान पर उपयोगी हैं । एक कारण को सर्वथा प्राधान्य देकर दूसरे को उड़ाया नहीं जा सकता अथवा सर्वथा गौण स्थान पर उसे हम रख नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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