Book Title: Jain Bauddh aur Gita ka Samaj Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 22
________________ भारतीय दर्शन में सामाजिक चेतना सम्बन्ध अनिवार्यतया हमारे सामाजिक जीवन मे हो है। प्रश्नव्याकरणसूत्र नामक जैन आगम में कहा गया है कि तीर्थकर का यह मुकथित प्रवचन सभी प्राणियों के रक्षण एवं करुणा के लिए है। पांचों महावत सर्वप्रकार से लोकहित के लिए ही है।' हिंसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार, संग्रह (परिग्रह) ये सब वक्तिक नहीं, सामाजिक जीवन की दुष्प्रवृत्तियाँ हैं। ये सब दूसरों के प्रति हमारे व्यवहार में गंबंधित है। हिमा का अर्थ है किमी अन्य की हिंसा, असत्य का मतलब है किगी अन्य को गलत जानकारी देना, चोरी का अर्थ है किमी दूसरे की सम्पत्ति का अपहरण करना, व्यभिचार का मतलब है मामाजिक मान्यताओं के विरुद्ध योन नम्बन्ध स्थापित करना, इसी प्रकार मंग्रह या परिग्रह का अर्थ है ममाज में आर्थिक विषमता पैदा करना। क्या समाज जीवन के अभाव में इनका कोई अर्थ या मंदर्भ रह जाता है ? अहिंगा, गन्य, अस्ता, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह की जो मर्यादायें इन दर्शनों ने दी वे हमारे मामाजिक सम्बन्धों की मुदि के लिए ही हैं। इमी प्रकार जैन, बौद्ध और योग दर्शनों की माधना पद्धति में गमान म्ग में पम्तुत मैत्री. प्रमोद. कम्णा और मध्यस्थ भावनाओं के आधार पर भी गामाजिक गाय को म्पट किया जा मकता है। जैनाचार्य अमिनगनि इन भावनाओं की अभिव्यक्ति निम्न गब्दों में करते हैं: गन्वेषु मंत्री गणीषु प्रमोद, क्लिष्टेषु जाप कृपापग्न्यम् । मध्यस्थभावं विपरीतवती गदा ममात्मा विदधात देव ॥२ 'हे प्रभ. हमारे मना में प्राणियों के प्रति मित्रता, गुणीजनों के प्रति प्रमोद, दुग्वियों के प्रति कणा तथा दुष्ट जनों के प्रति मध्यस्थ भाव मदा विद्यमान रहे ।' ग प्रकार इन भावनाओं के माध्यम ने ममाज के विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों ने हमारे गम्बन्ध किग प्रकार के हो यही स्पष्ट किया गया है। समाज में दूसरे लोगों की गाथ हम किस प्रकार विन जिये यह हमारी मामाजिकता के लिए अति आवश्यक है और इन दर्शनों में इस प्रकार में व्यक्ति को ममाज-जीवन में जोड़ने का ही प्रधान किया गया है। इन दिनों का हृदय रिक्त नी है । इनमें प्रेम और करना की अट धाग बह रही है। तीर्थ कार की वाणी का प्रस्फुटन ही लोक की कम्णा के लिए होता है (गमंचन लाये ग्वेयन्ने पवइय) । इसीलिए तो आचार्य नमन्तभद्र लियत है -'मर्वापदामन्नयन निरन्त मादयं तं मिदं तवैव', 'हे प्रभो आपका अनुगानन मभी दुःखों का अन्त करने वाला और सभी का कल्याण (मर्वोदय) करने वाला है ।' जैग आगमों में प्रस्तुत कुल-धर्म, ग्राम-धर्म, नगरधर्म, राष्ट्र-धर्म एवं गण-धर्म भी उसकी ममाज-मापेक्ष ता को स्पष्ट कर दत हैं । त्रिपिटक में भी अनेक संदर्भो में व्यक्ति के विविध मामाजिक सम्बन्धों के आदशों का चित्रण १. प्रश्नव्याकरण १।१।२१-२२ २. सामायिक पाठ (अमितगति)

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