Book Title: Jain Bauddh aur Gita ka Samaj Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 50
________________ जातियों होती है। होटे-बड़े जानवरों को भी जानों, उनमें भी बाति मय समान है जिससे भिन्न-भिन्न जातियां होती है। जिस प्रकार इन जातियों में भिन्न-भिन्न जातिमय लक्षण है, उस प्रकार मनुष्यों में भिन्न-भिन्न जातिमय लक्षण नहीं है। "ब्राह्मण माता की कोख से उत्पन्न होने से हो मैं किसी को ब्राह्मण नहीं कहता। जो सम्पतिशाली है (वह) धनो कहलाता है; जो अकिंचन है, तृष्णा रहित है, उसे में ब्राह्मण कहता है। न कोई जन्म से ब्राह्मण होता है और न जन्म से बनाएण । बाह्मण कर्म से होता है और बाह्मण भी कर्म से। रुपक कर्म से होता है, शिल्पी कर्म से होता है. वणिक कर्म से होता है, और सेवक भी कर्म से होता है, चोर भी कर्म से होता है, योडा भी कर्म से होता है, याचक भी कर्म से होता है और राजा भी कर्म से होता है।" ___ इस प्रकार बुद्ध जन्मना जातिवाद के स्थान पर कर्मणा जातिवाद की धारणा को स्वीकार करते है, लेकिन कर्मणा जातिवाद को मान्यता में भी बुद्ध न तो यह स्वीकार करते है कि वैयक्तिक दृष्टि मे जातिवाद कोई स्थायी तत्व है, जिसमें जन्म लेन पर या उम व्यवसाय के चयन के बाद परिवर्तन नहीं कर मकता और न यह है कि व्यवसायों की दष्टि में कोई उच्च और कोई नीच है। बुद्ध ब्राह्मणों के श्रेष्ठत्व को भी स्वीकार नही करतं । उनका कहना है कि कोई भी मनुष्य आचरण (नतिक विकास) के आधार पर श्रेष्ठ या निकृष्ट होता है, न कि जाति या व्यवसाय के आधार पर। भगवान बुद्ध की उपर्युक्त धारणा का स्पष्टीकरण मजिममनिकाय के अस्सलायनमुक्त में मिलता है, जिसमें भगवान बुद्ध ने जाति-भेद सम्बन्धी मिथ्या धारणाओं का निरमन कर चारों वर्गों के मोक्ष या नैतिक गुद्धि की धारणा की प्रतिस्थापना की है । उक्त मुत के कुछ महत्त्वपूर्ण अंश निम्न प्रकार है । हे गौतम ! ब्राह्मण ऐसा कहने है-जाह्मण ही श्रेष्ठ वर्ण है, दूसरे वर्ण छोटे हैं । बाह्मण ही गुक्ल वर्ण है, दूसरे वर्ण कृष्ण है । ब्राह्मण ही गुट है, भबाह्मण नहीं । ब्राह्मण ही ब्रह्मा के ओग्स पुत्र है, उनके मुख में उत्पन्न है, ब्रह्मानिर्मित है, ब्रह्मा के दायाद (उत्तराधिकारी) है। इस विषय में आप क्या कहते है ? बुद्ध ने इसका प्रतिवाद करते हुए वर्ण-व्यवस्था के मम्बन्ध में अपने दृष्टिकोण को निम्न प्रकार में प्रस्तुत किया है। ब्रह्मा कहना मूठ है-आश्वलायन ब्राह्मणों की ब्राह्मणियां ऋतुमती एवं गाभणी होती. प्रसव करती, दूध पिलाती देखी जाती है । योनि से उत्पन्न होते हुए भी वे ऐमा कहते हैं कि ब्राह्मण ही श्रेष्ठ वर्ण है । इस प्रकार बुद्ध ब्राह्मण के ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने की धारणा का खण्डन करते हैं। १. मुननिपात, ३५॥३-३७, ५७५९ २. मझिमनिकाय २१५॥३-उद्धृत-जातिभेद और बुद्ध, पृ०७

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