Book Title: Jain Bauddh aur Gita ka Samaj Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 103
________________ अंग, बोड और गोता का समाधान वृथा है।'' एक सच्चा जैन सभी धर्मों एवं दर्शनों के प्रति सहिष्णु होता है । वह सभी में सत्य का दर्शन करता है । परमयोगी जैन सन्त आनन्दघनजी लिखते हैं षट् दरमण जिन अंग भणीजे, न्याय पडंग जो माघे रे, नमि जिनवरना चरण उपासक, पटदर्शन आराधे रे। राजनैतिक सहिष्णुता आज का राजनैतिक जगत् भी वैचारिक संकुलता से परिपूर्ण है । पूंजीवाद, समाजवाद, माम्यवाद, फामिस्टवाद, नाजीवाद आदि अनेक गजनैतिक विचारधाराएं तथा राजतन्त्र, प्रजातन्त्र, कुलतन्त्र, अधिनायकतन्त्र आदि अनेकानेक शासन प्रणालियाँ वर्तमान में प्रचलित है । मात्र इतना ही नहीं, उनमें से प्रत्येक एकदूसरे की समाप्ति के लिए प्रयत्नशील है । विश्व के गष्ट्र खेमों में बँटे हुए हैं और प्रत्येक खेमे का अग्रणी राष्ट्र अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने के हेतु दूसरे के विनाश में तत्पर है। मुख्य बात यह है कि आज का गजनैतिक संघर्ष आर्थिक हितों का मंघर्ष न होकर वैचारिकता का संघर्ष है। आज अमेरिका और रूस अपनी वैचारिक प्रमुखता के प्रभाव-क्षेत्र को बढ़ाने के लिए ही प्रतिम्पर्धा में लगे हुए हैं । एकदूसरे को नाम,ष करने की उनकी यह महत्त्वाकांक्षा कहीं मानव-जाति को हो नामशेष न कर दे । आज के राजनैतिक जीवन में अनेकान्त के दो व्यावहारिक फलित-वैचारिक सहिष्णुता और समन्वय-अत्यन्त उपादेय हैं । मानव-जाति ने राजनैतिक जगत् में राजतन्त्र से प्रजातन्त्र तक की जो लम्बी यात्रा तय की है उसको सार्थकता अनेकान्त दृष्टि को अपनाने में ही है । विरोधी पक्ष के द्वारा की जाने वाली आलोचना के प्रति सहिष्णु होकर, उनके द्वारा अपने दोषों को ममझना और उन्हें दूर करने का प्रयाम करना, आज के राजनैतिक जीवन की मबसे बड़ी आवश्यकता है। विपक्ष की धारणाओं में भी सत्यता हो सकती है और सबल विरोधी दल को उपस्थिति से हमें अपने दोषों के निराकरण का अच्छा अवसर मिलता है-इस विचार-दृष्टि और महिष्णु भावना में हो प्रजातन्त्र का भविष्य उज्ज्वल रह सकता है। राजनैतिक क्षेत्र में संमदीय प्रजातन्त्र (पालियामेन्टरी डेमोक्रेसी) वस्तुतः राजनैतिक अनेकान्तवाद है । इस परम्परा में बहुमत दल द्वाग गठित सरकार अल्पमत दल को अपने विचार प्रस्तुत करने का अधिकार मान्य करती है और यथासम्भव उममे लाभ भी उठाती है। दार्शनिक क्षेत्र में जहां भारत अनेकान्तवाद का सर्जक है, वहीं वह राजनैतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातन्त्र का समर्थक भी है । अतः आज अनेकान्त का व्यावहारिक क्षेत्र में उपयोग करने का दायित्व भारतीय राजनीतिज्ञों पर है। १. अध्यात्मसार, ६९-७३. २. उत्तराध्ययनसूत्र, ३२।८.

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