Book Title: Jain Bauddh aur Gita ka Samaj Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 127
________________ ११२ जैन, बौद्ध और गीता का समाज दर्शन का प्रस्ताव करता है । जैन और बौद्ध परम्पराओं के समान वैदिक परम्परा भी सामाजिक जीवन के लिए अनेक विधि-निषेधों को प्रस्तुत करती है । वैदिक परम्परा के अनुसार माता-पिता की सेवा एवं सामाजिक दायित्वों को पूरा करना व्यक्ति का कर्तव्य है । देवऋण, पितृऋण और गुरुॠण का विचार तथा अतिथिसत्कार का महत्त्व ये बातें स्पष्ट रूप से यह बताती हैं कि वैदिक परम्परा समाजपरक रही है और उसमें सामाजिक दायित्वों का निर्वहन व्यक्ति के लिए आवश्यक माना यया है ।

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