Book Title: Jain Bauddh aur Gita ka Samaj Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 64
________________ स्पर्म की सवारणा अंडलेका स्वस्थान मोर उसके कर्तव्य का सिद्धान्त तवा स्पर्म-भारतीय परम्परा के स्वधर्म के सिद्धान्त के ममान ही पाश्चात्य परम्परा में डले ने 'स्वस्थान और उसके कर्तव्य' का सिद्धान्त स्थापित किया । बेडले का कहना है कि हम उस समय अपने को प्राप्त करते हैं जब हम अपने स्थान और कर्तव्यों को एक समाजरूपी शरीर के अंग के रूप में प्राप्तकर लेने है । बडले ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक एथिकल स्टडीज में इस सम्बन्ध में पर्याप्त प्रकाश डाला है। यहाँ तो हम केवल उसके सिद्धान्त का सारांश ही प्रस्तुत कर रहे है। अंडले के उपर्युक्त कथन का अर्थ यह है कि हमें अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को परख कर सामाजिक जीवन के क्षेत्र में अपने कर्तव्य का निर्धारण कर लेना चाहिए। वस्तुतः हमारा कर्तव्य वही हो मकता है जो हमारी प्रकृति हो । अपनी प्रकृति के अनुरूप सामाजिक जीवन में अपने स्थान का निर्धारण एवं उसके कर्तव्यों का चयन और उनका पालन ही बंडले के दृष्टिकोण का आगय है, यद्यपि यह ध्यान में रखना चाहिये कि स्वस्थान के अनुरूप कर्तव्य-पालन नैतिकता को अन्तिम परिणति नहीं है । हमें उससे भी ऊपर उठना होगा। १. एथिकल स्टडीज, पृ० १६३ २. एपिकल स्टडीज, अध्याय ५

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