Book Title: Jain Bauddh aur Gita ka Samaj Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 90
________________ सामाजिक नैतिकता के केन्द्रीय तत्व : अहिंसा, अनाग्रह और अपरिग्रह ७५ विरोध किया जाता रहा और जिसकी तीव्र प्रतिक्रियाओं के रूप में दिगम्बर सम्प्रदाय में तेरापंथ और तारणपंथ तथा श्वेताम्बर सम्प्रदाय में लोकागच्छ, स्थानकवासी एवं तेरापंथ (श्वेताम्बर आम्नाय) आदि अवान्तर सम्प्रदायों का जन्म हुआ, जिन्होंने धर्म के नाम पर होनेवाली हिंसा का तीव्र विरोध किया । (४) वैदिक परम्परा में जिस धार्मिक हिंसा को हिंसा नहीं माना गया उसका बहुत कुछ सम्बन्ध पशुओं की हिंसा से है, जबकि जैन - परम्परा में मन्दिर निर्माण आदि के निमित्त से भी जिस हिंसा का समर्थन किया गया, उसका सम्बन्ध मात्र एकेन्द्रिय अथवा स्थावर जीवों से हैं । (५) जैन परम्परा में हिंसा के किसी भी रूप को अपवाद मानकर ही स्वीकार किया गया, जबकि वैदिक परम्परा में हिंसा आचरण का नियम ही बन गयो । जीवन के सामान्य कर्तव्यों जैसे यज्ञ, श्राद्ध, देव, गुरु, अतिथि पूजन आदि के निमित्त मे भी हिमा का विधान किया गया है । यद्यपि परवर्ती वैष्णव सम्प्रदायों ने इसका विरोध किया । (६) प्राचीन जैन मूल आगमों में संयमी जीवन के अनुरण के लिए ही मात्र अत्यल्प स्थावर हिंसा का समर्थन अपवाद रूप में उपलब्ध है। जबकि वैदिक परम्परा में हिमा का समर्थन सांसारिक जीवन की पूर्ति तक के लिए किया गया है । जैन - परम्परा भिक्षु के जीवन-निर्वाह की दृष्टि से अपवादों का विचार करती है, जबकि वैदिक परम्परा सामान्य गृहस्थ के जीवन के निर्वाह की दृष्टि से भी अपवाद का विचार करती है । अहिंसा का विधायक रूप - जैन धर्म निवृत्तानुलक्षी होने से उसमें अहिंसा का निषेधात्मक स्वरूप ही अधिक मिलता है। श्वेताम्बर तेरापंथी जैन समाज तो केवल अहिंगा के निषेध रूप को हो मानता है । अहिंसा के विधायक पक्ष में उसकी आस्था नहीं है । पूर्वकाल के जैन सन्त अहिमा के इस निषेध पक्ष को ही अधिक प्रस्तुत करते थे, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता। फिर भी जैन सूत्रों में अहिंसा का विधायक पक्ष मिलता है । अहिंसा का विधायक पक्ष प्राणियों के हित-साधन में ही निहित है। जैन धर्म की अहिंमा इस रूप में विधायक है । आचारांगसूत्र में तीर्थस्थापना का उद्देश्य ममस्त जगत् के प्राणियों का कल्याण बताया गया है ।" इस प्रकार अहिंसा में जीवों के कल्याणसाघन का तथ्य निहित हैं, जो विधायक अहिंसा का मूल है। इतना ही नहीं, आचागंगसूत्र में कहा गया है कि समस्त तीर्थंकरों ने 'अहिंसा - धर्म' का प्रवर्तन समस्त लोक के खेद को जानकर ही किया है ।" 'खेयन्नेहि' शब्द के मूल में अहिंसा का विधायक रूप १. आचारांग, २।१५।६५८. २. वही, १/४/१/२७.

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