Book Title: Jain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva Author(s): Manishsagar Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur View full book textPage 9
________________ “ आशीर्वचन अभिनन्दन के स्वर मनीषसागरजी म.सा. को पीएच.डी. की उपाधि मिली, प्रसन्नता हुई। आपने 'जैन आचारमीमांसा में जीवन - प्रबन्धन के तत्त्व' विषय पर शोध किया व आप ग्रन्थ का प्रकाशन करने जा रहे हैं। निश्चित रूप से यह ग्रन्थ सभी धर्म प्रेमी साधकों सहित जनसामान्य का मार्गदर्शन करेगा। 5 अगस्त, 2012 नाकोड़ा तीर्थ मैं इस ग्रन्थ के प्रकाशन से जुड़े सभी महानुभावों को साधुवाद प्रेषित करता हूँ तथा इसके शीघ्र प्रकाशन की मंगल कामना करता हूँ । ॐ अर्हम् 80 परम पूज्य शासनप्रभावक खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्रीजिनकैलाशसागरसूरीश्वरजी म.सा. 21 सितम्बर, 2012 जसोल (राजस्थान) Jain Education International गच्छहितेच्छु गच्या, माचार्य का जिन कैलाशसागरसार खरतरगच्छाधिपति आचार्य जिनकैलाशसागरसूरि जैन आचार अपने आप में एक विशिष्ट साधना पद्धति है । उसमें अहिंसा पर बहुत सूक्ष्मता से ध्यान दिया गया है। वह अपने आप में विलक्षण प्रतीत होता । मुनिश्री मनीषसागरजी द्वारा प्रस्तुत 'जैनआचारमीमांसा में जीवन - प्रबन्धन के तत्त्व' एक विशालकाय ग्रन्थ है। वे स्वाध्याय के क्षेत्र में विकास करते रहें । पाठक को इस ग्रन्थ के स्वाध्याय से व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक जीवन - प्रबन्धन की समुचित प्रेरणा प्राप्त हो । शुभाशंसा । परम पूज्य शासनप्रभावक आचार्य महाश्रमणजी अभिनन्दन के स्वर For Personal & Private Use Only आचार्य महाश्रमण www.jainelibrary.orgPage Navigation
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