Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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( १४ ) उपाध्याय ४४१, भावो ४४३, भावकलश ४४३, भावप्रभ ४४४, भावसागरसूरि-शिष्य ४४४, भीम ४४६, भीमराज ४४६, भ० भुवनकीर्ति ४४७, भवनकीति ४४७, मतिसागर ४४८, मतिशेखर ४४९, मलयचन्द ४५१, महिन्दु या महाचन्द्र ४५३, महीचन्द्र ४५३, माणिक्य राज ४५४, माणिकसुन्दरगणि ४५५, मुनिचन्द्रसूरि ४५५, मूलप्रभसाधु । भावप्रभ), ४५५, साधुमेरुगणि ४५६, मलिग ४५७, मेरुसुदर उपाध्याय ४५७, मंगल धर्म ४५८, अज्ञातकवि कृत मंगलकलशरास ४५८, यशोधर ४५९, रत्नमंडल गणि ४६२, रत्नसिंहमूरि शिष्य, ४६३, रत्नसुन्दर ४६४, रत्नशेखर ४६५ रत्नाकरसूरि ४६६, राजतिलकगणि ४६७, राजरत्नसूरि ४६७, राजशील ४६८, लखमण (लक्ष्मण) ४६९, लखमसीह ४७१, ललितकीर्ति ४७१, लक्ष्मी रत्नसूरि ४७२, लक्ष्मीसागर ४७२, लक्ष्मीसागरसूरि-शिष्य ४७२, लक्ष्मी कल्लोल ४७२, लब्धिसागरसूरि ४७३, लाभमंडन ४७४, लावण्यदेव ४७५, लावण्यरत्न ४७६, लावण्यसमय ४७७, लावण्यसिंह ४८४, लीधो ४८४, वच्छ-वाछो ४८., वच्छभण्डारी ४८७, वरसिंह-वीरसिंह ४८८, वासण ४८९, विजयसिंह ४९०, भ० विजयकीर्ति ४९०, विजयगणि ४९०, विजयदेवसूरि ४९१, विद्याभूषण ४९२, विद्याधर ४९३, विद्यारत्न ४९३, विनय चन्द (२) ४९४. विनयचूला गणिनी ४९५, विनयभाव ४९६, विनयरत्न ४९७, वाचक विनयसमुद्र ४९७, विशालसुन्दर-शिष्य ५००, भ० वीरचन्द ५०१, शांतिसूरि ५०३, शिवसुन्दर ५०४, भ० शुभचन्द्र ५०५, शुभशील गणि ५०७, शुभवर्द्धन-शिष्य ५०७, समरचन्द्र (समरसिंह) ५०८, समरचन्द्र शिष्य ५०९, सर्वाङ्गसुन्दर ५१०, सहजसुन्दर ५१०, सर्वसुन्दरसूरि ५१४, सारविजय ५१४, साधुकीर्ति ५१५, साधुमेरु ५१५, साधुरत्नसूरि ५१५, सालिग ५१६, सिद्धर (श्रीधर) ५१६, सिंहकुशल ५१७, सिंहकुल ५१८, 'सिंहदत्तसूरि ५१९, सीहा ५१९, सुन्दरराज ५२०, मुनिसुन्दरमूरि ५२०, मुनिसुन्दरसूरि आदि शिष्य ५२०, सूरहंस ५२१, सेवक ५२१, सेवक (२) ५२२, आ० सोमकीर्ति ५२३, सोमकुंजर ५२५, सोमचन्द्र ५२६, सोमचरित्र गणि ५२७, सोमजय ५२७, सोमविमलसूरि ५२७, सौभाग्यसागरसूरि शिष्य ५३१, संघकलश ५३२, संघविमल ५३२, संघमाणिक्य शिष्य ५३३, संयम मूर्ति ५३३, संवेगसुन्दर ५३४, हर्षकलश-हर्षकुल (१) ५३५, हर्षकुल (२) ५३५, हर्ष प्रिय उपाध्याय ५३६, हर्षमूर्ति ५३७. पं० हरिश्चन्द्र ५३८, हेम विमलसूरि ५३८, हेमहंसगणि ५३९, हेमकान्ति ५३९, हेमध्वज ५४०, हंसधीर ५४०, हंससोम ५४१, श्रुतकीर्ति ५४२, ऋषिवर्द्धनसूरि ५४२, ज्ञान (ज्ञानचन्द्र) ५४३, भ० ज्ञानभूषण ५४५, ज्ञानसागर ५४७, ज्ञानाचार्य
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