Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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( १२ )
असवाल २२५, आसायत २२५, उदयकरण २२६, उदयवंत २२६, - कर्ण सिंह २२६, कवियण २२७, कान्ह २२७, गुणचन्द्रसूरि २२९, गुणरत्नसूरि २३०, चॉप - चंप २३१ जयकेशर मुनि २३२, जयतिलकसूरि २३३, जयमित्रहल्ल २३३, जय मूर्तिगणि २३४, जयवल्लभगणि २३४, जयशेखरसूरि २३५, जयसागर उपाध्याय २३८, जयसिंहसूरि २४०, जयानन्दसूरि २४२, जिनभद्रसूरि २४३, जिनरत्नसूरि २४४, जिनवर्द्धनसूरि २४४, जिनवर्द्धमानसूरि २४४, जिनशेखरसूरि २४५, जिनोदयसूरि २४६, डुंगरू २४६, तरुणप्रभसूरि २४७, तेजवर्द्धन २४७, दयासागरसूरि २४७, देवदत्त २४८, देवप्रभगणि २४८, देवरत्नसूरिशिष्य २४८, देवसुन्दर २५०, देवसुन्दरसूरि - शिष्य २५०, धनप्रभ २५०, धनपाल २५१, धनराज २५१, नयचन्द्र २५२, नरसेन २५२, पद्मतिलक २५३, पद्मानन्दसूरि २५३, परमानन्द २५४, प्रसन्नचन्द २५४, पृथ्वीचन्द २५५, पहुराज २५५, बच्छ भण्डारी २५६, भावसुन्दर २५८, भीम २५९, भैरइदास २६०, माउण सेठ २६१, माणिक्य सुन्दरसूरि २३१, माणिक्यसूरि २६२, मालदेव २६३, मुनिमहानन्दि २६३, मुनिसुन्दरसूरि २६४, मेरुतुंग २६४, मेरुनन्दनगणि २६४, मेघो (मेहो) २६८ मंडलिक २६९, यशः कीर्ति २६९, रत्नमण्डनगणि २६९, रत्नवल्लभ २७१, रत्नाकर मुनि २७१, रत्नशेखरसूरि २७३ राजतिलक २७३, राजलक्ष्मी २७४, राजशेखरसूरि २७५, वस्तिग ( वस्तो) २७७, विजयभद्र २७८, श्रावक "विद्धणु २८० भ० विनयचन्द्र २८०, विनयप्रभ २८१, वीरनन्दन २८५, शान्तिसूरि २८५, शिवदास २८६, शालिभद्रसूरि २८६, शालिसूरि २८६, भ० सकलकीर्ति २८७, सघारु २९०, समधर २९०, समयप्रभ २९१, समरा २९२, सर्वानन्दसूरि २९३, साधुकीर्ति २९४, साधुहंस २९५, सिद्धसूरि २९६, सोमकुंजर २९६, सोमतिलकसूरि २९७, सोमसुन्दरसूरि २९७, - सोमसुन्दरसूरि आदि शिप्य २९९, हरसेवक ३००, हरिकलश ३०१, हलराज ३०२, हीरानन्दसूरि ३०३, ज्ञानकलशमुनि ३०५, अज्ञात कविकृत ( रचनायें ) ३०६ ।
अध्याय ५
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- मरु-गुर्जर जैन साहित्य का इतिहास (सं. १५०१.१६०० )
मध्ययुग का प्रारम्भ ३१३, मध्ययुगीन मरु-गुर्जर जैन साहित्य की - सामान्य विशेषतायें ३१३, भाषा सम्बन्धी सामान्य विशेषतायें ३१५, छंद विधान ३१६, काव्य रूप ३१७, मरु-गुर्जर की जैनेतर रचनायें ३१७, लोक साहित्य ३१८, १६ वीं शताब्दी की राजनीतिक पृष्ठभूमि ३१८,
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