Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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( १३ ) सामाजिक परिस्थितियाँ ३२०, धार्मिक स्थिति : धार्मिक सुधार आन्दोलन ३२१, लोकाशाह और स्थानकवासी परम्परा ३२२, साहित्यिक गतिविधि ३२३, १६ वीं शताब्दी के कवियों का विवरण : अनन्तहंस ३२५, अनन्तहंस के अज्ञात शिष्य ३२६, अमीपाल ( श्रावक ) ३२७, आगममाणिक्य ३२७, आणंद ३२८, आनन्दप्रमोद ३२८, आनन्दमुनि ३२९, आनन्दमेरु ३३०, आसायत ( असाइत ) ३३१, आज्ञासुन्दर ३३२, ईश्वरसूरि ३३२, उदयधर्म ३३४, उदयभानु ३३५, उदयवंत ३३६, कडुआ ( कड़वो . ३३७, कनककवि ३३८, कक्कसूरि शिष्य (१) ३३९, कक्कसूरि शिष्य (२) ३४०, कमलधर्म ३४०, कमलमेरु ३४१, कल्याणचन्द्र ३४१, कल्याणजय ३४२, कल्याणतिलक ( उपाध्याय ) ३४३, कवियण ३४४, करमसी ३४५, कीरति ३४६, कीर्तिहर्ष ३४६, कुशलसयम ३४७, कुशलहर्ष ३४८, कोल्हि ३५०, खेमराज ३५०, खीमो या खीमा ३५३, क्षमाकलश ३५४, क्षान्तिरंग गणि ३५५, गजराज ( पंडित ) ३५६, गजलाभ ३५.६, गजेन्द्रप्रमोद ३५८, गणपति ३५८, गुणकीर्ति ३५९, गुणमाणिक्य-शिष्य ३६०, गौरवदास ३६०,. घणचन्द ३६३, चतरुमल ३६.३, चउहथ ३६५, चउआ ३६५, चतुर्भुज ३६६, चन्द्रप्रभसूरि ३६७, चन्द्रकीति ३६८, चन्द्रलाभ ३६८, चारुचन्द्र ३६८, छीहल ३६९, भ० जयकीर्ति ३७२, मुनि जयलाल ३७३, जयमंदिर ३७३, जयराज ३७४, जयवल्लभ ३७४, जयविजय ३७६, जयानन्द ३७६,जयहेम-शिष्य ३७७, भ० जिनचन्द्र ३७८, ब्रह्मजिनदास ३७८, जिनवर्द्धन ३८५, जिनसाधु सूरि ३८६, आ० जिनसेन ३८६, जिनहर ३८७, (ब्रह्म) जीवंधर ३८८, जीवराज ३८९, डुगर ३८९, ठकुरसी ३८९, दल्ह ३९२, दामोदर ( डामर ) ३९३, दामोदर ३९४, देपाल ३९४, देवकलश ३९८, देवकीर्ति ३९९, देवप्रभगणि ३९९, देवरत्न ४००, देवसुन्दर ४००, दौलतविजय ४०१, धनदेव गणि ४०१, धनसार ( पाठक ) ४०३, धर्मदास ४०४, धर्मदेव ४०५, धर्मरुचि ४०६, ब्रह्म धर्मरुचि ४०७, वाचकधर्मसमुद्र ४०८, धर्मसागर ४१०, धर्मसिंहगणि ४११, धर्मसुन्दर ४११, नन्नसूरि ४११, नन्दिवर्द्धनसरि ४१४, नयसिंहगणि ४१४, नरपति ४१४, नर. शेखर ४१६, न्यायसुन्दर उपाध्याय ४१६, नेमिकुंजर ४१७, पद्मनाभ ४१८, पद्ममंदिरगणि ४१८, पद्मसागर ४१९, पद्मश्री ४२०, पातो (पात. परबत) ४२०, परबत भावसार ४२१, प्रतिष्ठासोम ४२२, पार्श्वचन्द्रसूरि ४२२, पुण्यनन्दि ४२७, पुण्यरत्न ४२८, पुण्यलब्धि ४२९ भ० प्रभाचन्द ४३०, ब्रह्ममुनि ( विनयदेवसूरि ) ४३०, ब्रह्मबूचा (बूचराज ) ४३४, बुधराज ४३९, भक्तिलाभ ४३९. भक्तिविजय ४४०, भानुचन्द्र ४४१, भाव
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