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मरु-गुर्जर की निरुक्ति
४५ गोत्र में पैदा हुए थे। बाद में वैराग्य हुआ और दिगम्बर साधु बन गये। देशाटन करते आसाइत नगरी में पहँच कर इन्होंने वहीं यह ग्रन्थ लिखा । - इन्होंने स्वयंभू और पुष्पदन्त का उल्लेख किया है इसलिए इनका समय
उनके बाद ही होगा। प्रो० हीरालाल जैन ने इस ग्रन्थ की रचना का समय वि० सं० ११२२ के आसपास माना है। इन्होंने इसे सम्पादित करके कारंजा जैन ग्रन्थमाला में प्रकाशित भी किया है।
करकंड की माता राज यूत्री पद्मावती को मातंग नामक एक चांडाल ने पाला-पोषा था। इनके हाथ में कंडु (खुजली ) होने से नाम करकंडु पड़ गया था। ये अपनी योग्यता से दन्तिपुर के नरेश हो गये । इन्होंने मदनावती और रतिवेगा से विवाह किया था। शीलगुप्त नामक मुनि का सदुपदेश श्रवण कर इन्हें वैराग्य हआ और मुनि बन गये। इसमें मूलकथा के साथ नौ आवान्तर कथायें हैं। मुख्य पात्र करकंडु हैं। इसमें अनेक भौगोलिक स्थानों का मनोरम वर्णन है जैसे अंग देश का वर्णन करता हुआ कवि लिखता है :--
"छखंड भमि रयणहं णिहाणु रयणायरो व्व सोहायमाणु ।
एत्थथि खण्णउ अंगदेस महि महिलई णं विउदिव्ववेसु ॥" अर्थात् अंगदेश ऐसा सुन्दर है मानो पृथ्वीरूपी नारी ने दिव्य वेश धारण किया हो। ग्रन्थ में वीररसात्मक स्थल अधिक हैं। युद्धों के फलस्वरूप कई विवाह और शृंगाररस के प्रसंग भी आये हैं। अन्त में सबकी चरम परिणति निर्वेद में होती है। करकंडु जैनों के श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदायों के अतिरिक्त' बौद्धों के भी आदरणीय महापुरुष माने जाते हैं। आपकी भाषा अपभ्रंश और देशी भाषाओं के प्रयोगों के कारण भाषा विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। ____धाहिल--( १२ वीं शताब्दी) आप की कृति 'पउमसिरीचरिउ' की प्रति वि० सं० ११९१ की लिखित प्राप्त है अतः रचना इससे कुछ पूर्व की अवश्य होगी। श्री मधुसूदन मोदी और हरिवल्लभ भयाणी ने इसका सम्पादन करके भारतीय विद्या भवन, बम्बई से प्रकाशित कराया है। इसमें पउमसिरी के पूर्व जन्म की कथा का चार संधियों में वर्णन किया गया है । धार्मिक आवरण में यह एक सुन्दर प्रेमाख्यान है। पद्मश्री न तो ऐतिहासिक पात्र है और न पौराणिक, बल्कि शुद्ध कवि-कल्पना की उपज है। इसमें कवि पद्मावती के पूर्व जन्म की कथा द्वारा मानवों को अपने पूर्व भवों में किए कर्मों के फलभोग का निर्देश करके उसे वर्तमान जीवन में पुण्य कार्य करने की प्रेरणा देता है। काव्य में शृंगार की प्रधानता है किन्तु अन्त में
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