Book Title: Gyan Lochan evam Bahubali Stotram
Author(s): Vadirajkavi, Rajendra Jain, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 5
________________ सम्पादकीय माणिकचंद दिगम्बर जैन ग्रंथमाला बम्बई से प्रकाशित 'सिद्धान्तसारादि संग्रह' सम्पादन पं. पन्नालाल सोनी का प्रकाशित हुआ था। ब्र. राजेन्द्र जी ने पूज्य पं. पन्नालाल साहित्याचार्य से उसी में प्रकाशित 'ज्ञानलोचनस्तोत्रम्' का स्वाध्याय किया था । पश्चात् स्मृति रखने के लिए अर्थ रूप में लिख भी लिया था। मुझे उन्होंने दिखाया, मैंने देखा तो अर्थ जन्य और शब्द जन्य कुछ टियाँ दिखाई दी। मैंने उन्हें दूर कर तथा भाषा व्यवस्थित कर इसे प्रकाशन में लाने का प्रयास किया है। यह रचना अनुपम है। मुख्यत: से इस कृति में भगवान पार्श्वनाथ के गुणों का स्तवन किया गया है। साथ ही कृतिकार ने अपनी निन्दा की है। जिससे वह अपने जीवन को पवित्र करना चाहते हैं। कृतिकार में साधक जीवन के लक्षण प्रतिभासित होते है। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं: दाता न पाता न च धामधाता . कर्ता न हर्ता जगतो न भर्ता। दृश्यो न वश्यो न गुणागुणज्ञो ध्येयः कथं केन स लक्ष्मणा त्वम्।।6।। अर्थ :- हे भगवन् ! न आप जगत् के दाता हो, न रक्षा करने वाले हो, न तेज को धारण करने वाले हो, न हरण करने वाले हो, न भरण-पोषण करने वाले हो. न दृष्टिगोचर हो, न किसी के वशवी हो, न गुणज्ञ हो, न अगुणज्ञ हो, हे भगवन् ! मैं कैसे तुम्हें ध्याऊ अर्थात् आपका ध्यान कैसे करूँ ? वह कौन सा लक्ष्ण है जिसके द्वारा आपको ध्याया जाये अर्थात् आपका ध्यान किया जाये। छन्नोऽजिनेनाप्रसवोऽस्थिभूजो मेधैर्गतो वृद्धिमिहाज्ञताद्यैः। आत्मा द्विजश्चेच्छिरवरेऽस्य जल्पेत्त्वद्गोत्रमंत्रं न तदाऽस्य भद्रम्।। 14।। अर्थ :- इस जगत में फूल पत्तों से रहित यह अस्थि रूप वृक्ष चमड़े (त्वचा) से आच्छादित है और अज्ञानता आदि मेयो के ब्दारा वृद्धि को प्राप्त हुआ है और आत्मा रूपी पक्षी इस अस्थि रूपी वृक्ष के अग्रभाग पर यदि हे भगवन् ! आपके नाम मंत्र बोले तो इसका भला नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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