Book Title: Gyan Lochan evam Bahubali Stotram Author(s): Vadirajkavi, Rajendra Jain, Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur View full book textPage 8
________________ श्री वादिराज कवि 'ज्ञानलोचनस्तोत्र' के कर्ता श्री वादिराज हैं। इन्होंने वाग्भटालंकार पर 'कविचन्द्रिका' नाम की एक सुन्दर संस्कृत टीका लिखी है। उसी की प्रशस्ति से मालूम होता है, कि ये खण्डेलवाल वंश में उत्पन्न हुए थे और इनके पिता का नाम पोमराज था। तक्षक नगरी के राजा राजसिंह के संभवत: ये मंत्री थे और राजसेवा करते हुए ही इन्होंने इस टीका की रचना की थी। राजा राजसिंह भीमदेव के पुत्र थे। कविचन्द्रिका की समाप्ति इन्होंने विक्रम संवत् १७२९ की दीपमालिका को की थी। ये बहुत बड़े विद्वान् थे। इन्होंने स्वयं ही कहा है, कि इस समय मैं धनंजय, आशाधर और वाग्भट का पद धारण करता हूँ। अर्थात् मैं उनकी जोड़ का विद्वान् हूँ और जिस तरह उक्त तीनों विद्वान् गृहस्थ थे मैं भी गृहस्थ हूँ: धनंजयाशाधरवाग्भटानां धत्ते पदं सम्प्रति वादिराजः। खाण्डिल्यवंशोद्भवपोमसूनः जिनोक्तिपीयूषसुतृप्तगात्रः॥ प्रशस्ति के एक और श्लोक में उन्होंने अपनी और वाग्भट की समानता बड़ी खूबसूरती से दिखलाई है : श्रीराजसिंहनृपतिर्जयसिंह एव श्रीतक्षकाख्यनगरी अणहिल्लतुल्या। श्रीवादिराजविबुधोऽपरवाग्भटोऽयं श्रीसूत्रवृत्तिरिह नन्दतु चार्कचन्द्रम्॥ अर्थात् हमारे राजा राजसिंह जयसिंह (वाग्भट कवि जिस राजा के मंत्री थे) ही हैं और यह तक्षक नगरी अणहिल्लबाड़े (जयसिंह की राजधानी) के तुल्य है और वादिराज दूसरा वाग्भट है। इनके बनाये हुए और किसी ग्रंथ का हमें पता नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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