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21- मरकतमणि के प्रभा के समान प्रभा वाले पार्श्वनाथ प्रभु के प्रभा मण्डल में स्वदया रस से दैदीप्यमान परमागम नामक तीर्थ में चारों निकाय के देवों के शरीर निमग्न श्रान्त हुए की तरह प्रतीत होते हैं।
22- इन पार्श्वनाथ प्रभु के द्वारा घातिया कर्म जीत लिये गये है। काल व्यतीत हो रहा है। वीता हुआ काल समीप नहीं आता है। इस प्रकार लोगों को बार बार बतलाती हुए के समान आकाश में आपकी दुन्दुभि अतिशय रूप से बज रही है।
23- हे भगवन् ! घातिया कर्मों के विनाश से और अनंत सुखादि अनन्त चतुष्टय के प्रकट हो जाने से क्षुधा, तृषा आदि परिसह आपको कोई बाधा नहीं पहुंचा सकते अत: अकिंचित्कर है । अघातिया कर्मों का सत्व और उदय आपके शरीर को पीड़ित कर सकते है क्या ? अर्थात् विष रहित सर्प के समान आपका कुछ नहीं कर सकते।
24- हे जिन! आप मारे गये और मारे जाने वाले नारकादि प्राणियों को देखते हुए चारित्र के भंग से भोजन नहीं करते किन्तु दीर्घकाल पर्यन्त आकाश में चलने के प्रसंग से इस विषय में निश्चित रूप से कोई अतिशय है कि आप बिना आहार के रहते है।
25- ब्रह्म लोक पंचम स्वर्ग के अन्त में रहने वाले सब देवों में श्रेष्ट लोकान्तिक देवों के पुरुष वेद का उदय रहने पर भी स्त्रियों के निमित्त से काम विकार जनित पीड़ा नहीं होती है। लौकान्तिक देव ब्रह्मचारी होते है। उनकी देविया नहीं होती है। उसी तरह असाता के उदय से हे भगवन् ! आपको पीड़ा नहीं होती है क्योंकि कर्म रूप सामग्री के अभाव में फल का उदय नहीं होता।
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