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26- हे स्वामी ! जो इस जगत में खाता है, सोता है, पीता है, सदोष है, अत्यधिक मोह करता है, द्वेष करता है, खेद खिन्न होता है इत्यादि अठारह दोष जिसमें होते हैं वह व्यक्ति विशाल संसार सागर में भार स्वरूप है।
27- अद्वैतवाद के समूह का निषेध करने वाले, एकांत श्रद्धा के विस्तार को हरण करने वाले एवं सत्य तत्त्व की मीमांसा करने वाले मीमांसक, सुगत, गुरु, हिरण्यगर्भ, कपिल और जिन भी आप ही है।
___28- हे भगवन् ! जिस हठी दुष्ट शठ कर्मठ के द्वारा आप उपसर्ग को प्राप्त हुए तथा नीलाचल के समान योग से चलित नहीं हुए, किन्तु वह कमठ ही धरणेन्द्र के द्वारा गर्व रहित कर दिया गया। अत: आप धैर्यशाली हैं।
29- हे भगवन् ! संसार के दुखों से सज्जनों को शरणभूत तथा करुणानिधि स्वरूप सुनकर आपसे मैं संसार के दुःखों का निवेदन करता हूँ तथा आपके अगणित सद्गुणों की स्तुति करने को असमर्थता के कारण समर्थ नहीं हूँ अर्थात् आपके गुण अधिक है और मैं उन गुणों का स्तवन करने में समर्थ नहीं
30- हे भगवन् ! यह अज्ञानी प्राणी खोटे देव रूप लघु तालाब तथा खोटे आप्त और कुतत्व रूपी जाल में भ्रम से गिरकर संसार रूपी समुद्र में मिथ्यात्व रूपी मांस को निगलकर हृदय में धारण किये हुए कौलिकागोलक के समान होता है अर्थात् कुलीन स्त्री के द्वारा जार पुरुष से गर्भधारण के समान होता है।
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