Book Title: Gyan Lochan evam Bahubali Stotram
Author(s): Vadirajkavi, Rajendra Jain, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 4
________________ प्रकाशकीय ब्र. विनोद जी, का रायपुर आना पर्व में हुआ था। आपकी सारगर्भित वाणी से मैं अत्यधिक प्रभावित हुआ । मैं प्रतिवर्ष धार्मिक कार्यों में वार्षिक व्यय करता रहता हूँ । ब्रह्मचारी जी की प्रेरणा से भाव त्रिभड्गी, श्रुतस्कंध, आसव त्रिभड़गी, ध्यानोपदेश कोष ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किये गये है। उसी श्रृंखला में ज्ञानलोचन एवं बाहुवलि स्तोत्रम् प्रथम बार अनुवाद सहित प्रकाशित किया जा रहा है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन पूज्य पिता श्री कस्तूरचंद जी गंगवाल एवं माता श्री गुलाब बाई गंगवाल की स्मृति में उनकी पुत्रवधु श्रीमती उर्मिता गंगवाल कर रही हैं । श्रीमती उर्मिला जी पिता श्री कस्तूरचंद एवं माताश्री गुलाब बाई के प्रति पूर्ण समर्पित है। श्री कस्तूरचंद एवं गुलाब बाई जी के बारे में क्या कहा जाये ? आप दोनों ही सरल एवं उदार हृदय व्यक्ति थे। आप दोनों की धर्म में अगाढ़ श्रद्धा थी । निरन्तर जीवन में कर्त्तव्यपथ के साथ-साथ जीवन के । अन्तिम लक्ष्य मोक्ष की तरफ आपका सदैव ध्यान बना रहता था । श्रावक के षट् - आवश्यक कर्तव्यों का निर्दोष और समीचीन रीति से पालन करते थे । तीर्थ वंदना में आपकी अत्यधिक रूचि थी। यही कारण था कि आप दोनों ने समस्त तीर्थों की श्रद्धा से पूर्ण वन्दना की थी। निरन्तर धर्म में समय व्यतीत हो ऐसी भावना के कारण आप लघु शान्ति विधान से लेकर सिद्धचक्र विधान यथा काल सम्पन्न करवाते रहते थे। आपकी दृष्टि गुणग्राही थी। सज्जनों का सम्मान तथा दुर्जनों के प्रति मध्यस्थ भाव ये दोनों भाव आप दोनों के व्यक्तित्व में पूर्णतः समाये हुये थे। साधु-सन्तों के प्रति पूर्ण समर्पण था । इन सभी गुणों के कारण आज हम लोग भी धर्म में पूर्ण आस्थावान् हैं । इस कृति का साधु-समाज में पूर्णरूपेण उपयोग हो ऐसी मनोभावना है । प्रकाशक गंगवाल धार्मिक ट्रस्ट नयापारा, रायपुर (म.प्र.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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