Book Title: Gurupad Puja Author(s): Ajitsagarsuri Publisher: Shamaldas Tuljaram Shah View full book textPage 5
________________ पण सफल थतो नथी. अहो ! गुरुप्रभाव केवो अलौकिक छ, जेनो अवधि पण आंकी शकातो नथी. शरणं भव्य जिआणं, संसाराडविमहाकल्लम्मि । मुत्तुणं गुरु अन्नो, पत्थि णहोही णविय हुत्था ॥२॥ आ जगत्नी अंदर मृषावादी असमार्गना उपदेशको तो घणाए दृष्टिगोचर थाय छे. परंतु मितभाषी सन्मार्गना यथार्थ उपदेष्टा गुरु तो क्वचितन होय छे, तेवा सद्गुरु विना अन्य कोइपण भव्य जीवोने संसाररूप अति गहन अटवीमां शरण छे नही. भविष्यमा पण गुरु शिवाय अन्य त्राता नथी, तमज प्राचीन कालमां पण गुरु एज उद्धारक थएला छे. माटे त्रणे कालमां गुरु शिवाय कोइनो उद्धार थतो नथी. ___ गुरुभक्तिथीज आ संसारसागर तरवानो छे अने मुरु शिवाय अज्ञान टलवानुं नथी. जह दीवो अप्पाणं, परंच दीवइ दित्ति गुणजोगा। __ तह रयणत्तयजोगा, गुरूवि मोइंधयारहरो ॥१॥ हे भव्यात्माओ! जेम दीपकमा प्रकाशक गुण रहेलोछे, जेथी ते पोताने अने परपदार्थने प्रकाशित करे छे. तेवीन रीवे ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप रत्नत्रयना आराधक होवाथी गुरुपण मोहरूपी अंधकारने दूर करी पोताने अने परने दीपावे के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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