________________ गुण - P.PA. Gunatnasuti MS कुलन्नूषण इत्याख्या, तस्य जाता मनोरमा // वमानः कलाशाली, कमात्तारुण्यमाप सः॥ चरित्र. न केवलं पिता तस्य, कंन्यां योग्यां विचिंतयत् // बहिर्विहारे गळतं, तं वीक्ष्य सकलो जनः॥ नाले स्वन्नावसभूतं मद्भुतद्युतिभासुरम् // स्वर्णमौक्तिकरत्नानि, विनापि सुमनोहरम् ॥युगम्॥ ते पुत्रनुं 'कुलभूषण' एवं मनोहर नाम पाडयु. पछी कलाओनो अभ्यास करतो वृद्धि पामतो ते कुमार | अनुक्रमे युवावस्था पाम्यो. // 123 // पछी फक्त पिताज तेनी योग्य कन्यानो विचार करतो नहोतो, परंतु व्हार क्रीडा करवा जता, भाळमां स्वभावी उत्पन्न थयेला, अद्भुत कांतिथी देदीप्यमान तेमज सुवर्ण, मोती अने रत्नोनां आभूषणो विना पण अत्यंत मनोहर एवा ते राजकुमारने जोइ सर्वे माणसो पण तेनी योग्य क न्यानो विचार करता हता.॥ 124 // 125 // * विवाणा तिलकं कांचिदंगनां कांचन विम् ॥सोऽशतिदन्यदा स्वप्ने,मा वृणिष्वेति नाषिणीम्॥ एक दिवस ते कुलभूषण कुमारे तिलकने धारण करी रहेलो, सुवर्णना समान कांतिवाली अने " तुं म्हारा A विना वीजानी साथे विवाह करीश नहीं." एम कहेती एवी कोइ स्त्रीने स्वप्नामां दीठी. // 126 // * स्वप्नं दृष्ट्वा प्रबुशेऽसौ, चिंतयामास चेतसि // तिलकस्यैव चिन्हेन, परिणेया मयागना // 1 // इति निश्चित्य पित्रासौ, कन्यकावरणेऽनिशम् ॥याच्यमानोऽपि नो मेने, मानिनीना मनोहरः॥ * स्वप्न ने जोइ जागी उठेलो कुमार मनमां विचार करवा लाग्यो के, " तिलकनां चिन्हे करीने अर्थात् ति लकाचिन्हवाली म्हारे स्त्री परणवी." // 127 // ए प्रकारे निश्चय करीने स्त्रीयोने मनोहर एवा ए राजकुमारे * पिताए निरंतर विवाह करवान कह्या छतां पण ते मान्युं नहि // 128 // मंत्रिमात्रादिनिर्मित्रं, प्रेरितो मतिसागरः // तमूचे हेतुना केन, विवाहं नहि मन्यसे // 15 // नक्तं विना न वैद्योऽपि, पुःखं जानाति कस्यचित् // विनाध्वनिं मयुराणां, वारिदोऽपि न वर्षति // पछी मंत्री अने मातादिके मेरेलो मतिसागर नामनो मित्र कुलभूषण कुमारने कहेवा लाग्यो, " हे मित्र ! ant KXXXXXXXXXXXXXX**** Jun Gun Aracak Trust