Book Title: Gunvarma Charitra
Author(s): Maganlal Hathishang
Publisher: Maganlal Hathishang
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________________ KXXXXX चरित्र PP.AC.Gunratnasun M.S. JUML एमाणकुडल पोताना मित्र रत्नाभने क्याइ पण न जोइने सर्व ठेकाणे भमतो छतो तेज वनमां आव्यो के, ज्यां तेनो मित्र रत्नाभ रह्यो हतो. // 341 // पछो पोताना मित्र मणिकुंडलने ओलखो आंमुथो भरपूर ।।?शा नेत्रवाला कुरूप रत्नाभे पोताने थयेलुं श्राप अने निग्रहनुं वृत्तांत कही संभळाव्यु // 34 // * श्रुत्वेति स परित्राम्यन्नाययौ नगरं तव // ज्ञात्वा दोहदवृत्तांतं, पुनर्मित्रांतिकं ययौ // 33 // वामनत्वकुरूपत्वमोहोऽत्रैव नविष्यति // इति तेन सामानोय, स्थापितोऽयं पुरे तव॥३॥ ___(चंद्रकीर्ति राजाने तेनो जमाइ कहे छे के) रत्नाभनां एवां वचन सांभळीने पछी ते मणिकुंडल भमतो भमतो अहिं तमारे नगरे आव्यो अने दोहदनो वृत्तांत सांभली फरी मित्र रत्नाभ पासे गयो॥ 343 // " अहिंज तेना वामणपणानो अने कुरुपपणानो नाश थशे." एम धारो मणिकुंले तेने अहिं लावी तमारा नगरमां राख्यो. // 344 // * मणिकुंझलसानिध्यात्, कार्यं कृत्वा ततस्तव // वामनत्वकुरूपत्वमादं प्राप कणादसौ 345 सिंहारोपे प्रियायास्ते, वामनत्वमसौ जहौ // श्यामायाः करसंश्लेषे, कुरूपत्वं च सोऽमुचत्॥ ___ पछी मणिकुंडलनी सहाय्यथी तमारं कार्य करो ते रत्नान क्षणमात्रमा वामनपणाथी अने कुरुपपणाथी छुटो थयो. // 345 // तमारी प्रियाने सिंह उपर वेसारवाथी तेणे वामनपणुं त्यजो दोधुं अने श्यामाना हस्त मेलापथो तेणे कुरुपपणुं पण छोडी दोधुं. // 346 // सोऽहं रत्नाननामास्मि, खेचरो निजरूपन्नाक् // नदिलस्कंदिलाद्यं यत्तत्सर्वं कल्पितं मम॥ नत्तमानां हि सांगत्याउत्तमत्वं नजेन्नरः // सुवर्ण चूर्णसंयोगालोहं नवति कांचनम् // 348 // ते हुं पोते रत्नाभ नामनो पोताना रुपने पामेलो विद्याधर लु, अने जे भधिल स्कंदिल विगेरे कह्यु हतुं ते सर्व म्हारु कल्पीत कहेg हतुं. // 347 // उत्तम माणसना संगथो नाणस नत्तमपणुं पामे छे. जेम लोहुँ सुवर्णना चूर्णना योगथी सोनुं वनी जाय छे. // 348 // EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradha Trust

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