Book Title: Gunvarma Charitra
Author(s): Maganlal Hathishang
Publisher: Maganlal Hathishang

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Page 239
________________ P.P.A. Gunratnasuti MS XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX | जैनें नवनं विंबं, तत्प्रतिष्टा च पुस्तकम् // चतुर्दा संघन्नक्तिं ते, तीर्थयात्रां च चक्रिरें // 576 सर्वप्रकारैःसर्वेऽमी, त्रिसंध्यं जिनपूजनम् // चक्रिरे निजदेशे च, सप्तव्यसनवारणाम्॥५॥ वली ते पुगेए जिनभुवन, विंध, प्रतिष्टा, पुस्तक अने चार प्रकारना संघनी भक्ति तेमज तीर्थयात्रा करी // वली ते पुत्रोए सर्व प्रकारे त्रणे काल जिनपूजन कराव्युं अने पोताना देशमा सात व्यसननो निषेध करयो.॥५८७ अन्येद्युस्तीर्थयात्रायां, समेता हस्तिनापुरे॥ मिलिताःबांधवाःसर्वे, तेऽन्योऽन्यं प्रीतिशालिनः॥ नरवर्ममुनौ सिडिं, संप्राप्ते विहरन्महीम् // गुणवर्मगुरुस्तत्र, तमागातीर्थयात्रया // 5 // ____ कोइ वरखते तीर्थयात्रामा हस्तिनापुर नगरपां ते प्रीतिवन सर्व बंधुओ एकठा थया. // 588 // श्री नरवर्षा केवली सिद्धिपद पाम्या पछी पृथ्वी उपर विहार करता एवा गुणवमा गुरु ते वखते सां तीर्थयात्रा करवा आल्या. // 509 // अनन्नवृष्टोवत्प्राप्नं, तातं दृष्ट्वा प्रमोदतः // तेऽमुं ववंदिरे प्रीत्या, शुश्रुवुर्धर्म देशनाम् // 5 // धर्मार्थकाममोकेषु धर्मो मूलं निगधते // अर्थादयो मूलरूपाइदिन्ये प्रजायते // 5 // 1 // वादलां विनानी दृष्टिनी पेठे पिताने ओचिंता आवंला जोइ ते पुत्रोए तेमने हर्षथी वंदना करीने प्रीतिथी धर्म देशना सांभलो. // 50 // धर्म, अर्थ, काम अने मोक्षने विषे धर्म मूळरूप कहेवाय छे अने मूलरूप धर्मथी अ| थादि बोजा उत्पन्न थाय छे. // 591 // - तारणाय नवांनोधौ, धर्मस्तावत्तरीसमः // चारित्रमेव चारित्रतुलां तत्रबिनलाम् // 5 // राज्यमाज्यमिव त्याज्यं, संवज्वरेण धीमता // यतःस्वल्पसुखं जंतोरत्यंत दुःखसंचयः॥५९३ __संसार समुद्रने तारवा माटे धर्म प्रथम वहाण समान छे अने तेमां चारित्र त चारित्रनी तुल्यताने धारण करे छे. / / 592 // ताववालो जेम घीने त्यजी दे तेम बुद्धिमान पुरुषे राज्यने त्यजी देवू. कारण के, ते राज्यथी प्राणीने बहु थोडं सुख अने बहु दुःख थाय छे. // 593 // EXXXXXXXKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX GAS *tara tirman

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