Book Title: Gunvarma Charitra
Author(s): Maganlal Hathishang
Publisher: Maganlal Hathishang
View full book text
________________ गुण चरिः !!103 // TAITAC.Gunratnasun M.S. तत् ज्ञात्वा विजया दध्यौ, प्राग्दत्तोऽस्ति वरो ममा॥ तेन स्वस्वामिना राज्यं, निजपुत्रायदापये॥ श्रुतायामिति वार्ताया, नूपश्चिते व्यचिंतयत् // कुत्र स्थाने गृहीतोऽस्मि, तयाप्यबलयाधुना॥ आवात जाणोने विजया विचार करवा लागी के, " मने राजाए पूर्व वरदान आप्यु छे, माटे हुं तेमनो पासेथी म्हारा पुत्रने राज्य अपा. // 357 // विजयानो आवो विचार सांभली राजाकीर्तिचंद्र पण विचार करवा लाग्यो के, "अहो ! हवणां ते निर्बल एवी स्त्रोये पण मने केवा स्थानमा वश करी दीधो छे."॥३५८॥ इति चिंतयति मापे, वनपालो व्यजिझपत् // समेताः कानने संति, प्रन्नो श्रीप्रनसूरयः॥ श्रुत्वति नूपतिः कांताहितीयेन समन्वितः // जगाम सपरिवारः, सूरीनंतु महोत्सवात् // आ प्रमाणे राजा विचार करतो हतो, एवामां वनपाले आदीने विनंतो करोके, “हे प्रभो! उद्यानमां श्री प्रभसूरि आव्या छे."॥३५९ // वनपालनां एवां वचन सांभली वे स्रोयो सहित परिवारे विटलायलो राजा महोत्सवथी मूरिने वंदना करवा गयो. // 360 // तत्र गत्वा गुरूत्रत्वा, निविष्टो नूपतिः पुरः॥ शुश्राव क्लेशनाशाय, पेशलां देशनामिति // मित्रपुत्रकलत्राणि, विघटते क्षणात्पुनः // सम्यगाराधितो धर्मो, न जंतुषु कदाचन // 362 // त्यां जइ अने गुरुने नमस्कार करी तेमनी आगल बेठेलो राजा क्लेशने नाश करवा माटे उत्तम एवी देशाना ने आ प्रमाणे सांभलवा लाग्यो. // 361 ॥“मित्र पुत्र अने स्त्रो ए क्षणमात्रमा नाश पामी जाय छे, परंतु उत्तम रीते आराधेलो धर्म प्राणीने विषे क्यारे पण नाश पामतो नथी." // 36 // देशनामित्यसौ श्रुत्वा, प्रवुहृदयोऽनवत् // नृपः पुनर्गुरून्नत्वा, जगाम निजमंदिरम् 363 र | निविश्य मंत्रिनिर्यावशज्यचिंता करोत्यसौ // तावत्तत्र समायाता,विजया वीक्ष्यतेस्म सा॥ ए प्रमाणे देशना सांभलीने राजा प्रतिबोध पाम्यो; तेथी ते फरी गुरुने नमस्कार करी पोताना घेर गयो. // 363 // पछी ए राजा मंत्रीनी साथे बेसीने राज्यनो विचार करतो हतो, तेटलामां तेणे त्यां पोतानी पासे आवती एवी ते विजयाराणीने दीठी.॥३६४॥ Jun Gun Ancho Trust 13 //

Page Navigation
1 ... 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242