Book Title: Gunvarma Charitra
Author(s): Maganlal Hathishang
Publisher: Maganlal Hathishang
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________________ Sy PP.AC.Gunratnasun M.S. EXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ततो विवाहसामग्री, जायतेस्म महोद्यमात् // ताशंकरराजर्षिः सहसा पुरमाययौ॥४५॥ तमायांतं वने दृष्ट्वा, मंत्रोस्वन्नवने स्थितः // वातायने निविष्टः स्वे, चिंतयामास चेतसि // पछी म्होटा उद्यमथी विवाहनी सामग्री करवा मांडी, एवामां शंकर राजर्षि (गौरी राणीनो पति) तत्काल ते नगर प्रत्ये आव्या. // 445 // तपस्वीने नपवनमां आवेला जोइ मंत्री पोताना घरने विषे रह्यो छतो गोखमां बेसीने पोताना चित्तमा विचार करवा लाग्यो- // 446 // हलकष्टाममीनूमि, नाकामंति तपस्विनः // ततःकथमयं प्राप्तः, किंमनस्तपन्निःश्लथम् // तदा राज्यं परित्यज्य, रान्नस्यने वयं ययौ // विध्यं गज श्व स्मृत्वा, पुनरेषसमाययौ धवन a आ तपस्वीयो हलथी खेडेली भूमिने उल्लंघन करता नथी, तो पछी ए केम आव्या हशे ? शुं एमनुं मन * तपथी शिथील थयुं छे. ? 447 // तेओ ते वखते राज्यने त्यजी दइ वनमां गया हता अने हवणां विद्याचलने हाथी स्मरण करीने त्यां चाल्यो ज़ाय एम फरी अहिं आव्या छे. // 8 // परीक्ष्यामि गत्वाहं, स्वरूपं स्वयमेव तत् // पश्चात्पद्मनरेंशय, कथयामि यथोचितम प्र0 इति ध्यात्वा वनं गत्वा, मुनिं नत्वा निविष्टवान् // प्रपञ्च कुशलं मंत्री, नक्त्या विरचितांजलिः॥ * प्रथम त्यां जइ हुं तेमनी परीक्षा करुं अने पछी पद्मराजाने योग्य वात कहुं. // 449 // आ प्रमाणे विksi चार करी मंत्री उपवनमा जइ मुनिने नमस्कार करीने बेठा अने भक्तिथी हाथ जोडी कुशल पूछवा लाग्यो.४५० s/ अस्माकं केवलाद्भाग्याधुयमत्र समागताः॥ केनापि हेतुना वेति, विज्ञप्तो मुनिरब्रवीत् 451 * सर्वत्र कुशलप्रभः, प्रायसः क्रियते जनैः॥ परं मंत्रिन् मनुष्याणां, कुशलत्वं विलोक्यते // ____ अमारा भाग्थथी तमे अहिं आव्या छो अथवा कोई कारणथी आव्या छो ? एम विनंती करी एटले मुनिये कां. // 451 // “घणुं करीने सर्व ठेकाणे माणसो कुशलप्रश्न करे छे, परंतु हे मंत्री ! मनुष्योनुं कुशलपणं जोवाय छे. // 452 // KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jun Gun Aaradhak Trust

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