Book Title: Gunvarma Charitra
Author(s): Maganlal Hathishang
Publisher: Maganlal Hathishang
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________________ गुण // 11 // PPC Guru MS चित्तं विना प्रतीकारा, जुतमारेनिरे ततः॥ गुणो न तस्य कोऽप्यासीरोदितिस्म जनोऽखिलः चरिर रुदत्यां वनमालायां, गौस्यां वा सपरिचदे॥ चारणश्रमणश्चस्तत्रागाल्लानहेतवे // 500 // पछी मन विना उपायो करवा मांड्या, परंतु तेथी कांइ गुण थयो नहीं; तेथी सर्व माणसो रोवा लाग्या॥ वनमाला, गौरी अने परिवार रोवा लाग्या, एटलामां त्यां कोई चंद्र नामना चारण मुनि लाभ माटे आव्या. 500 अहोन्नाग्यमहो नाग्यं, प्राप्तोऽयं मुनिपुंगवः // एतेन ज्ञायते नूनं, नव्यमेव नविष्यति 501 एवंलोके वदत्येव, तत्पाददालनोदकैः॥ मातृस्वसृन्यां सिक्तोऽनूनिर्विषो नृपतिःक्षणात् 55 - अहो ! आ म्होठं भाग्य अहो ! आ म्होटुं भाग्य ! जे आ उत्तम मुनि आवी पहोंच्या निश्चे एमनाथी सारुं थशे एम समजाय छे. // 501 // लोको एम बोलता हता एवामां माता अने व्हेन ते मुनिना चरणना जल थी ते पद्म राजा उपरथी सिंचन करयुं, जेथी ते राजा तुरत विष रहित थयो. // 502 // अथोत्याय निविष्टोग्रे, मुनिं नत्वा नृपो जगौ // कथ्यतां केन मे दत्तं, वैरिणा विषमुत्कटम् // चित्ते व्याकुलयो बोढं, प्रश्नेऽस्मिन् मंत्रिपुत्रयोः॥मुनिःप्रोवाच जानिते, के दमंत्वं विधास्यति ___ पछी उठीने मुनिने नमस्कार करी तेमनी आगल बेठेला राजाए कह्यु के, " हे मुनि ! मने विष कोणे आप्युं हतुं ते कहो ? // 503 // राजाए आ प्रमाणे प्रश्न करयो एटले मंत्रो अने तेनो पुत्र बन्ने जणा व्याकुल थवा लाग्यो. मुनिये कह्यु. “ए वात जाण्याथी तुं तने विष आपनारने शो दंड आपीश ?" // 504 // नूपो जगौ रुषा मूलात्नमुन्चेश्यामि निश्चितम् ॥मुनिः प्रोचे ततो राजन् , श्रूयतां कथ्यते यथा विषस्य दायकौ तौ हो, संप्रताय निरंतरम् // यत्रैकस्तत्र चान्यः स्यादेवं प्रीति परायणौ // * राजाए का. "हुं तेने क्रोधथी निश्चे मूलमाथी उखेडी नाखीश." मुनिए कह्यु. " जो एम छे तो हे राजन् ! सांभल. हुं तेने कहुं छु. // 505 // विष आपनारा ते वे जणा निरंतर रया छे के जेमां एक तेमां वीजो एवा ते परस्पर प्रोतिवाला छे. // 506 // Jun Gun Amaca Trust 11 //

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