Book Title: Gunvarma Charitra
Author(s): Maganlal Hathishang
Publisher: Maganlal Hathishang

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Page 232
________________ PPA Gunnatut MS तारपद्य सुदर / / त्वया प्राताववाद्यासा, त्वत्सगाममाप्स्यात J सा पार्श्वे जैनसाधूनां, नेतव्या धर्महेतवे // तुष्टो चाद्यानिलाषे ते दिव्यनाट्यं करोम्यहम् // // 11 // - हे सुंदर ! हवे हुं तेने विषे थाकीने त्हारी आगल आव्यो छु; जेथी तुं सवारे तेनी साथे विवाह करजे; कारण ते हारा संगथी धर्म पामशे. // 531 // तेने हारे धर्म माटे जैन साधु पासे लइ जवो. आजे आवा अभि लापथो प्रसन्न थयेलो हुं दिव्यनाटय करुंळु. // 532 // . * एवमुक्त्वा स्वरूपं स व्यंतरेऽस्तिरोदधे // प्रातः प्रवुदः स्वंतातमयं नंतुं समागतः // 533 // * तदा धनेश्वरः श्रेष्टो, स्थालमापूर्यमौक्तिकैः // नृपाय प्रानृतीचके, प्रोचे च रचितांजलिः // - ए प्रमाणे सर्व वात कहीने ते व्यंतरदेव अदृश्य थइ गयो. पछी सवारे जागी उठेलो रत्नसिंह पिताने * नमन करवा गयो. // 533 // ते वखते धनेश्वर शेठे मोतीथो थाल भरी राजा जयदेवने अर्पण करयो अने हाथ जोडी कडेवा लाग्यो के, // 534 // दे देव देवता कापि, स्पप्नेमांमित्युपादिशत् // रत्नसिंहाय दातव्या, स्वपुत्रो नृपसूनवे॥५३॥ तेनेषा दोयते तस्मै, वरेष्वन्येषु भूरिषु // नमित्युक्ते नरेंण, स तया परिणायितः // 536 // "हे देव ! मने कोइ देवताए स्वप्नमां एम कहुं छे के,"त्हारे पोतानी पुत्री जयदेव महाराजाना पुत्र रत्नसिंहने आपवी. / / 535 // माटे वीजा वरो बहु छतां पण ते हुं आपना पुत्रनेज आपुं छ. " राजाए ते वात कवुल * करी एटले रत्नसिंहने ते रत्नश्री साथे परणाव्यो. // 536 // तान्यां शुन्नाभ्यां नार्याभ्यां,सहितोऽयमनंगवत्॥रतिप्रीतिसमान्यां स, रेमे स्वैरं वनादिषु॥ इतश्च तत्र संप्राप्ता, रत्नसखरसूरयः // नूपो जगाम तं नंतुं, परिवारसमन्वितः॥ 538 // . रति अने प्रीतिसहित कामदेवनी पेठे ते रत्नसिंह कुमार पोतानी रमा अने रत्नश्री सहित पोतानी मरजी प्रमाणे नपवादिकने विषे क्रोडा करवा लाग्यो. // 537 // पछी त्यां रत्न शेखर सुरी आव्या, तथी राजा परिवार सहित तेमने वंदना करदा गयो. // 538 // KXT23233 (KXXXX Jun Gun anchal Trust

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