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गणितानुयोग : प्रस्तावना
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हुआ दूसरे अयन में - मण्डल चलता हुआ नैऋत्यकोण के १५वें है। चन्द्र पर संचरित भागों में गति करता है। उसी अद्ध
६७ मण्डल पर जाता है। यह अन्य चन्द्र मण्डलों में चलता है।
मण्डल में स्व-पर-संचरित - भाग पर भी वह गति करता दूसरे नक्षत्र अर्द्ध मास में २६ भाग चन्द्र असामान्य गति से प्रवेश
है। यहाँ पश्चिमी भाग को नैऋत्य श्री अमोलक ऋषि द्वारा कहा करके चलता है। १ युग में ६७ नक्षत्र मास होते हैं और १७६८
है। एकी मण्डल से रकी मण्डल तक ४१ अर्द्ध मण्डल पर चलपूर्व
कर अर्द्ध मण्डल १३+१३+१४-६७ पूर्ण करता है। १ ईशान
मण्डल के ६७४२= १३४ भाग होते हैं। इसके ६७ भाग में २
सूर्य व अन्य ६७ भाग में २ चन्द्र गमनशील हैं। उत्तर
दक्षिण
अर्थात् एक एक विभाग ३३% का होता है। किन्तु ४९
आग्रेय
चलकर ईशान कोण में आता है । इनमें
'वायव्य
वायव्य
मृत्य
कोण में सूर्य का क्षेत्र स्पर्श करता है जो पर-क्षेत्र है। साथ ही
पश्चिम
ईशान कोण में चन्द्र का स्पर्श करता है जो स्वक्षेत्र
चंद्र मण्डल होते हैं । इसलिए १ नक्षत्रमास में १७६८ =
है। कारण कि शेष मण्डल स्वतः का है। इस प्रकार १३ भाग
६७
२६. मण्डल चलता है। १ चन्द्र की अपेक्षा से १४वें मण्डल पर-क्षेत्र १५१- भाग स्वक्षेत्र है। जो १३ भाग स्व-पर का कहा
पर चन्द्रायण होता है। शेष १२ मण्डल अनन्तर मण्डल के २६ उसमें ३२ भाग स्वक्षेत्र और ६१ भाग अग्निकोण में सूर्य
४१
भाग जाकर नक्षत्रमास पूर्ण हो जाता है। इस नक्षत्र मास की का पर-क्षेत्र है। इस वर्णन को शोध का विषय बनाया जा सकता आदि से चन्द्र बाह्यमण्डल में प्रवेश करता १३वें मण्डल से है क्योंकि पाठार्थ से यह निकालना विचार का विषय है। यहाँ
मूल पाठ में क्षेत्र शब्द आया है। कारण यह है कि एकी मण्डल निकलकर १४वें मण्डल के २६वें भाग में नक्षत्र मास को पूर्ण
से निकलकर बेकी मण्डल पर भाग चलता है तब बेकी करता है । यहाँ दूसरा चन्द्रायण नक्षत्र मास की अपेक्षा से पूर्ण होता है।
मण्डल का अपने नववे आंक में कहा है। उससे अपने मण्डल पर यहाँ तक चन्द्र अर्द्ध मण्डल की अपेक्षा २ अर्द्ध मण्डल चलता है किन्तु यहाँ स्व व पर का कहने का कारण यह है कि
संपूर्ण मण्डल १३ भाग का है । इसके ६७ भाग दो सूर्य के और +: अर्द्ध मण्डल + + - अर्द्ध मण्डल अधिक चल चुकता
६७ भाग दो चंद्र के यों प्रत्येक भाग ३३१- का हुआ। किन्तु है। यहां तृतीय चन्द्रायण गत चन्द्र पश्चिमी बाह्यनन्तर अर्द्ध मण्डल के स्वयंचरित १ भाग से प्रवेश करता हुआ गति करता ४१. चलकर नैऋत्य कोण के मण्डल पर आता है जिसमें ४१
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