Book Title: Epigraphia Indica Vol 18
Author(s): H Krishna Shastri, Hirananda Shastri
Publisher: Archaeological Survey of India
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EPIGRAPHIA INDICA.
[Vol. XVIII
20 स्व(स्वामिनो) म केशवस्य सुत(ता)[य] भरुदड़(द्रटाय) सलिलधारा.
पुरस(स्म)-- 21 रस विधिना प्रतिपादितो(तमस्माभिः प(पा) चन्द्रावतारा(२) याव[*] पचा22 टभटप्रवे[गेन' सवा(बा)धा[प]रिहारणाकरत्वेन भुज23 दिईर्मगौरवानि*]न केनचियाघातनीयं [॥ अस्मत्कुलक्रममुदार24 मुदाहरहिरन्यैश्च दानमिदमभ्यनुमोदनीयं [*] लम्या25 स्तडित्मलिलवुहु(बुद्ध)दचञ्चलाया दानं फलं परयम[:]प
Third Plate ; First Side. 26 रिपालनञ्च [॥३*] उच्च धर्मशास्त्रे [*] बहुभिर्वसुधा दत्ता रा27 बभि[:] सगरादिभि[:.] । (१) यस्त्रयस्य य[दा] भूमिस्तस्यतस्य तदा 28 फलं ॥[४*] मा भूदफलशका व: परदत्तेति पार्थिवा[*] (1) खदाना29 त्फल[मानंत्यं] परदत्तानुपालनं(न) [५] वदना परदत्ताम्वा यो 30 हरेत वसुन्धरां [1] स विष्ठां(ठायां क्रमिभवा पित्र(त)भिः 31 सह पच्यते ॥[*] षष्टि(टिं)वष(वर्ष)सहस्राणि स्वर्गे मोदति भूमिदः । 32 अक्ष(पाक्षे)प्ता चानुमता(ता) च स ए(तान्ये)व नरकं व्रजेत् [७] ति
कमलदला33 म्व(म्बु)वि(बि)न्दुलोला नियमनुचिन्त्य मनुष्यर्जीवितश्च 1(0) सकलसि(मि)द34 [मुदा[हतञ्च (बु)ध्वा नहि चे(पु)रत() परकीर्तयो विलोप्या[8] [५]
सर्व
Third Plate ; Second Side. 35 स्वयमादिष्टो राजा दूक(न)कोच श्रो - - - - लिखि[स]ञ्च 36 सान्धिविग्रहिककुने (बे)र(२)[ण*1] उत्कीर्ण (चा)क्षसा(शा)लिकदुर्गदेवेन । 37 लाञ्छित(तं) जच्छिकाया[:] सस्कुलोनायाच [1]
J.-- Ganjam Plates of Vidyadharabhasjadēva.
First Plate. 1ों [] जयति कुसुमवा(वा)प्राणविचोभदच(ई) स्वकिरणपरि
वेषोजि]2 त्यजीने (सोन्दुलेख(ख) [*] त्रिभुवनभवनान्तोतभावत] प्रदीपं(पः) कनक
[निकष] - 3 गौरं विमुनेच() हरस्थ [१] षाहरिव ये फणा[*] प्रविलसन्त्यु
शाखरेन्दुत्वि[षः] . 4 प्र[*] लेयाचलङ्गकोटय इव त्वजन्ति येत्युबताः।"] नृता(त्ता)हो(टो)पविध5 हिता इव भुजा राजन्ति ये पा(मान)वा ।' ते(स्ते) सर्बाधविघातिन[:]
सुर]1 Metre: Vasantatilakā. · [These two letters appear to be superfluous.-14.] +Expressed by asymbol. The portion of the plato containing the letters in square brackets is broken off [Superfluous.--Ed.] Metre: Malint.
Punctuation superfluous.
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