Book Title: Epigraphia Indica Vol 18
Author(s): H Krishna Shastri, Hirananda Shastri
Publisher: Archaeological Survey of India
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No. 29.]
FOUR BHANJA COPPER-PLATE GRANTS.
86 चेता चानुमन्ता च स एव नरकं व्रजेत् [ ॥७*] इति कमलदलाम्बु(बु)वि(बि) दुलो
37 ला (सां) श्रियमनुचिन्त्य मनुष्यजीवितच [1] सकलमिदमुदा [४] तच 38 बुद्दा (बुवा) नहि पुरुषे[:"] परकीत्तयो विलोप्या [: *] [5"] स्वयमादिष्टो राज (शा)
Third Plate; Second Side.
39 दूतकोत्र भट्टसुमङ्गल [: * ] ॥ लिखित स [T]न्धिविग्रहिकसव40 राज (जेन) ॥ ऊ ( 3 ) त्कीर्णश्चाचशा [लि] कदुर्गादेवेना (न) ॥ लान्छितं मा
41 माया[: ॥ *]
I. Ganjām Plates of Notpibhañjadāva.
First Plate.
1 औ" [n] स्वस्ति [ ॥*] जयतु कुसुमवा (बा) यप्रायविचोभद [च] 2 स्वकिरणपरिवेशो (षो) किंत्यजीर्सेन्ट (न्दु) लेखं [*] त्रिभुवन
3
भवनान्तर्धीतभावप्र (प्र) दीपं ( प ) कनकनिकष गोर (गौर) वि (ब) धुने4 जं हरस्य [॥ १* ] 3 शेषाहेरिव ये फणा: प्रविरलन्त्युनाखरे5 न्दुत्विषः । प्रालेयाचलु (ल) शृङ्गकोटय इव त्वङ्गन्ति येश्यन (त्युख)6 ता [: । *] वृत्ताटोपविध [हि]ता इव भुजा राजन्ति ये शाभ[वा]7 ते सर्व्वाघविघातिनः सुरसरितो (तो) योम्य [: * ] पान्तु वः [॥२*]°
8
विजयवच्छ्रुवका [त् * । ]
चस्ति जयश्रोनिलय [: *]
प्रकटग (गु) -
295
Second Plate; First Side.
9 []स्तसर्व्वरिपु [ग]र्व्वः' कल्याणकलमनामा राजा निर्श्व (घं) तक10 लिकलुषः भचामलकु[ल*]तिलक[: *] श्रीशिलाभच्च देवस्य प्रपौं11 चः श्री शत्रुभच्वदेवस्य नप्ता श्रोरणभवदेवस्य सूतु [:"] परम12 माहेश्वरी मातापितृपदानुध्यानरतः श्रोनेतृभच्वदेव[:*] कु13 शली मछाड़खण्ड राजराज [1*]नकराजपुत्रान् विषयपतिद
14 ण्डपाशिकान् यथाकालाध्यासिनो व्यवहारियो ब्रा (ब्राह्मणान् कर [*]15 पुरोगान् मि (नि) वासिजनपद [च] यथाई ( हैं ) मानयति वो (बो) धयति स16 मादिशति सर्व्वत [: *] शिवसस्माकमन्यत् विदितमस्तु भव [तां] एत
17 द्दिषयसम्बन्धा (म्वद्दो) मच्छढ़ ग्रामयतुसि (स्त्री) मापरि [च्छि] बो[स्माभी] (भि)
Second Plate; Second Side.
18 प्रतापित्रोरान (मन) च पुष्याव (भि) [च]ये वाजसेन ( समेय) च [र]णाय वच्छ (स) [गो] -
18 चाय प्रवरभङ्गिरस अनुप्रवरभ[1*]मेव [वाय *]
करम्पसामि
Expressed by a symbol.
1 Metre: Pushpitägrä. Read fe as in H. above and J. below. [See footnote 4 on p. 293 above-Ed]
● Metre: Mālini.
• Metro : Sardilavikridita.
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