________________
धर्म और दर्शन
भारत और धर्म
भारतवर्ष धर्मप्रधान देश के नाम से विख्यात हैं। भारत की यह ख्याति प्राधुनिक भारतीय जीवन के कारण नहीं, वरन् इस कारण है कि इतिहासातीत काल से भारत को प्रजा का जीवन धर्म से अनुप्राणित रहा है। जब से मानव समाज का निर्माण हुना, सभ्यता और संस्कृति का नवोन्मेष हुमा, तभी से प्रजा के एक विशिष्ट वर्ग ने धर्मसम्बन्धी चिन्तन और उसके प्रचार-प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित किया और उस वर्ग की परम्परा आज भी अक्षुण्ण रूप से चली आ रही है। उस वर्ग को भारतीय प्रजा ने अपनी श्रद्धा-भक्ति अर्पित की और अपना उद्धारक माना है। भारत कभी ऐश्वर्य या वैभव का उपासक नहीं रहा, उसने सदा धर्म की आराधना की है। चक्रवर्ती सम्राट भी धर्मप्राण सन्तों के चरणों में विनम्रभाव से नतमस्तक होते आए हैं। धर्म की रक्षा में ही हमारी रक्षा है,१६ यह भारत के मनीषियों का उद्घोष रहा है। भारतीय साहित्य में धर्म की रक्षा के लिए प्राणों का बलिदान करने वाले वीर पुरुषों और नारियों के सहस्रों उदाहरण विद्यमान हैं, जो आज भी प्रेरणा के स्रोत हैं । इस प्रकार भारत को धर्म प्रधान देश कहने में तनिक भी अत्युक्ति नहीं है। भले आज आचरण में धर्म की न्यूनता दृष्टिगोचर होती हो परन्तु भारतीय जनमानस धर्म के प्रति आज भी सर्वाधिक
आस्थावान् है। धर्मसम्बन्धी भ्रम
विज्ञानप्रदत्त सुविधाओं के कारण अाज समग्र विश्व जैसे एकाकार हो गया है। प्रत्येक देश का दूसरे समस्त देशों के साथ निकटतम सम्पर्क स्थापित हो गया है। ऐसी स्थिति में वांछनीय तो यह था कि भारतीय धर्म एवं संस्कृति का सदेश समग्र विश्व में फैलता, किन्तु ऐसा हो नहीं रहा है । जो देश वैज्ञानिक दृष्टि से उन्नत और इसी कारण सबल हैं, उनका प्रभाव हमारे देश पर बड़ी तेजी से पड़ रहा है। उनकी विचारधारा भी भारतीयों को प्रभावित कर रही है। उसके फलस्वरूप धर्म के सम्बन्ध में अनेक प्रकार के भ्रमों की सृष्टि १६. धर्मो रक्षति रक्षितः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org