Book Title: Dharm aur Darshan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 167
________________ १५२ धर्म और दर्शन है । इत्वरिक तप अवकांक्षासहित होता है और यावत्कथिक अवकांक्षा रहित होता है। इन दोनों के भी अनेक भेद प्रभेद हैं। (२) ऊनोदरिका-आगम साहित्य में ऊनोदरिका, अवमोदरिका33 और अवमौदर्य ये तीन नाम उपलब्ध होते हैं । आहार की मात्रा से कम खाना, कुछ भूखा रहना, कषायों को कम करना, उपकरणों को कम करना ऊनोदरिका है। मुख्य रूप से ऊनोदरिका तप के तीन भेद हैं-(१) उपकरण अवमोदरिका, (२) भक्त पान अवमोदरिका (३) और भाव अवमोदरिका ।३५ इन तीनों के भी अनेक भेद प्रभेद प्रतिपादित किये गये हैं ।३६ (३) भिक्षाचर्या-स्थानाङ्ग, भगवती, उत्तराध्ययन और प्रोपपातिक में प्रस्तुत नाम प्राप्त हैं और समवायांग, व तत्त्वार्थ सूत्र में ३१. इत्तरिय मरणकाला य, अणसणा दुविहा भवे । इत्तरिय सावकंखा निरवकंखा उ बिइज्जिया ॥ -उत्तराध्ययन ३०९ .३२४. समवायाङ्ग सम० ६ (ख) भगवती २५७ (ग) उत्तराध्ययन ३०१८ ३३. (क) स्थानाङ्ग ३।३।१८२ (ख) औपपातिक ३० (ग) भगवती २५७ ३४. (क) उत्तराध्ययन ३०।१४,२३ (ख) तत्त्वार्थ सूत्र ६१६ तिविहा प्रोमोयरिया पं० तं० उवगरणोमोयरिया, भत्तपाणोमोदरिता, भावोमोदरिता। --स्थानाङ्ग ३॥३॥१८२ औपपातिक ३० (ख) भगवती २५७ (ग) ठाणाङ्ग ३।३।१८२ (घ) उत्तराध्ययन ३० समवायाङ्ग, सम०६ ३८. सत्त्वार्थ सूत्र १९१६ ३५. ३६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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