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धर्म और दर्शन
है । इत्वरिक तप अवकांक्षासहित होता है और यावत्कथिक अवकांक्षा रहित होता है। इन दोनों के भी अनेक भेद प्रभेद हैं।
(२) ऊनोदरिका-आगम साहित्य में ऊनोदरिका, अवमोदरिका33 और अवमौदर्य ये तीन नाम उपलब्ध होते हैं । आहार की मात्रा से कम खाना, कुछ भूखा रहना, कषायों को कम करना, उपकरणों को कम करना ऊनोदरिका है। मुख्य रूप से ऊनोदरिका तप के तीन भेद हैं-(१) उपकरण अवमोदरिका, (२) भक्त पान अवमोदरिका (३) और भाव अवमोदरिका ।३५ इन तीनों के भी अनेक भेद प्रभेद प्रतिपादित किये गये हैं ।३६
(३) भिक्षाचर्या-स्थानाङ्ग, भगवती, उत्तराध्ययन और प्रोपपातिक में प्रस्तुत नाम प्राप्त हैं और समवायांग, व तत्त्वार्थ सूत्र में
३१. इत्तरिय मरणकाला य, अणसणा दुविहा भवे । इत्तरिय सावकंखा निरवकंखा उ बिइज्जिया ॥
-उत्तराध्ययन ३०९ .३२४. समवायाङ्ग सम० ६
(ख) भगवती २५७
(ग) उत्तराध्ययन ३०१८ ३३. (क) स्थानाङ्ग ३।३।१८२
(ख) औपपातिक ३०
(ग) भगवती २५७ ३४. (क) उत्तराध्ययन ३०।१४,२३
(ख) तत्त्वार्थ सूत्र ६१६ तिविहा प्रोमोयरिया पं० तं० उवगरणोमोयरिया, भत्तपाणोमोदरिता, भावोमोदरिता।
--स्थानाङ्ग ३॥३॥१८२ औपपातिक ३० (ख) भगवती २५७ (ग) ठाणाङ्ग ३।३।१८२ (घ) उत्तराध्ययन ३०
समवायाङ्ग, सम०६ ३८. सत्त्वार्थ सूत्र १९१६
३५.
३६.
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