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श्रमण संस्कृति और तप
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इसे 'वृत्ति संक्षेप' और 'वृत्तिपरिसंख्यान' कहा है। अभिग्रह पूर्वक भिक्षा का कम करना वृत्तिसंक्षेप है।३९ अर्थात् जीवन निर्वाह के साधनों का संयम करना। औपपातिक और भगवती में इसके तीस भेदों का उल्लेख है । स्थानाङ्ग४२ में उनके अतिरिक्त दो भेदों का और उल्लेख किया है तथा उत्तराध्ययन3 में भी अन्य भेदों का निरूपण है।
(४) रसपरित्याग-घृत, दूध, दही, मक्खन आदि रसों का परित्याग करना,४४ तथा प्रणीत पान भोजन का वर्जन करना। उमास्वाति ने मद्य, मांस, मधु और मक्खन आदि जो रस विकृतियाँ हैं उनका प्रत्याख्यान तथा विरस आदि का अभिग्रह रस
(ख) दशवकालिक नियुक्ति गा० ४७ ३६. भिक्षाचर्या सर्व तपो निर्जराङ्गत्वादनशनवद् अथवा सामान्योपादानेऽपि विशिष्टा विचित्राभिग्रहयुक्तत्वेन वृत्तिसंक्षेपरूपा सा ग्राह्या।
ठाणाङ्ग ५।३।५१ वृत्ति ४०. औपपातिक सम० ३० ४१: भगवती २५७ ४२. ठाणाङ्ग ५।११३६६ ४३. अट्ठविहगोयरग्गं तु तहा सत्तेव एसणा । अभिग्गहा य जे अन्ने भिक्खायरियमाहिया ।।
-उत्तरा० ३०१२५ ४४. खीरदहिसप्पिमाई पणीयं पाणभोयणं, परिवज्जणं रसाणं तु भणियं रसविवज्जणं ।
-उत्तरा० ३०१२६ (ख) घृतादिवृष्यरसपरित्यागश्चतुर्थ तपः।
-तत्त्वार्थ० ६।१६ सर्वार्थसिद्धिः
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