Book Title: Dharm aur Darshan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 228
________________ धर्म का प्रवेश द्वार : दान ८० आवश्यक सूत्र, उपासक दशांग, " सूत्रकृताङ्ग, भगवती आदि में (१) प्रशन, (२) पान, (३) खादिम, (४) स्वादिम, (५) वस्त्र, (६) प्रतिग्रह, (७) कम्बल, (८) पादपोंछन ( ६ ) पीठ, (१०) फलक (११) शय्या (१२) संस्तारक (१३) औषध (१४) भैषज्य, इन चौदह देय वस्तुनों का निर्देश करके प्रकारान्तर से दान के चौदह भेद कहे गए हैं। बौद्ध साहित्य में भी विविध दृष्टियों से दान के भेद निरूपित किये गये हैं । महात्मा बुद्ध ने (१) प्रामिषदान [ इन्द्रियों के विषयों का दान ] (२) और धर्मदान, ये दो भेद किये हैं । इन दोनों दानों में धर्मदान मुख्य है। फलदान की दृष्टि मे दान के तीन भेद हैं (१) दृष्ट धर्म वेदनीय, (२) परिपक्व वेदनोय, (३) और अपरावर्य वेदनीय | पात्र भेद की दृष्टि से भी दान के तीन प्रकार हैं - (१) पुद्गल दान, (२) संघदान, (३) और उद्देश्यदान । दान देने वाले के तीन प्रकार हैं (१) दानदास, (२) दान सहाय, (३) और दानपति । २१३ दायक और दानपात्र की उत्कृष्टता व निकृष्टता के कारण दान की विशुद्धता भी चार प्रकार की है ८०. ८१. समणे निग्गंथे फासुए एसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेरगं वत्थपडिग्गहकंबलपायपुंछरणं पाडिहारिएणं पीढफलगसिज्जासंथारएणं ओसहभेषज्जेण य पडिलाभेमाणे विहरामि । - आवश्यक सूत्र कप मे समणे नि गन्थे फासुएणं ससाणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थकम्बल पडिग्गहपायपुंछरणेण पीढफलगसिज्जासंथारएणं ओसहभे सज्जेण य पडिला भेमाणस्स विहरित्तए - - उपासकदशा - ११५८ ८२. अंगुत्तर निकाय २।१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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