Book Title: Dharm aur Darshan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 240
________________ महावीर के सिद्धान्त २२५ आग में कितना ही ईधन डाला जाय वह कभी तुष्ट नहीं होती, सागर में चाहे कितनी ही सरिताएं गिरें उसे तृप्ति नहीं होती।' यही अवस्था मानवमन की है। एतदर्थ महावीर ने इच्छाओं के नियंत्रण पर बल दिया। धन को ही जीवन का ध्येय समझने वालों को महावीर ने कहाधन इस लोक और परलोक में तुम्हारी कहीं भी रक्षा नहीं कर सकता, अतः धन को नहीं, धर्म को महत्त्व दो । धर्म ही सच्चा रक्षक और सही शरण है ।२८ अनेकान्त : श्रमरण भगवान श्री महावीर ने अनेकान्त का सन्देश देते हए कहा-तत्त्व उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य युक्त है ।२९ सत्य का परिज्ञान करने के लिए अपेक्षित है कि वस्तु का सभी दृष्टियों से चिन्तन किया जाय । जो वस्तु नित्य प्रतीत होती है, वह अनित्य भी है। जो वस्तु क्षणिक है वह नित्य भी है। जहाँ नित्यता है वहाँ अनित्यता भी है । अनित्यता के अभाव में नित्यता की प्रत्तीति नहीं हो सकती, और नित्यता के अभाव में अनित्यता की पहचान नहीं हो सकती है। एक की प्रतीति द्वितीय की प्रतीति से ही संभव है । अनेकानेक अनित्य प्रतीतियों के मध्य जहां एक स्थिर प्रतीति होती है, बह ध्रौव्य है। सब ज्ञानों की विषयभूत वस्तु अनेकान्तात्मक होती है। अतः २७. वित्तेण ताणं न लभे पमत्त, इमम्मि लोए अदुवा परत्था । -उत्तराध्ययन प्र०४।गा०५ २५. एको हु धम्मो नरदेव ! ताणं न विज्जए अन्नमिहेह किंचि।। -उत्तरा० अ० १४१४० २६. उप्पन्नेइ वा, विगमेइ वा, धुवेइ वा। -स्थानाङ्ग सूत्र, ठा० १० ३०. अनेकान्तात्मकं वस्तु गोचरं सर्वसंविदाम् । -न्यायावतार, सिद्धसेन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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