Book Title: Dharm aur Darshan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 246
________________ महावीर के सिद्धन्त २३१ अशाश्वत है । द्रव्यार्थिक दृष्टि से शाश्वत है और भावाथिक पर्यायार्थिक दृष्टि से अशाश्वत है।४६ ___ द्रव्य दृष्टि का अर्थ है अभेदवादी दृष्टि और पर्यायदृष्टि का अर्थ है भेदवादी दृष्टि । द्रव्यदृष्टि से जीव में जीवत्वसामान्य का कभी अभाव नहीं होता, वह किसी भी अवस्था में हो, जीव ही रहता है, अजीव नहीं होता। अतः वह नित्य है। पर्याय दष्टि से जीव किसी न किसी पर्याय में रहता है। एक पर्याय का परित्याग कर अन्य पर्याय को ग्रहण करता रहता है, अतः अनित्य है। ___जीव सान्त है या अनन्त है, इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने कहा जीव सान्त भी है और अनन्त भी है। द्रव्य की दृष्टि से एक जीव सान्त है। क्षेत्र की अपेक्षा से भी जीव असंख्यातप्रदेशयुक्त होने से सान्त है । काल की दृष्टि से जीव भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्यत् काल में रहेगा, अतः अनन्त है। भाव की अपेक्षा से जीव के अनन्त ज्ञानपर्याय, अनन्त दर्शन पर्याय, अनन्त चारित्र पर्याय और अनन्त अगुरुलघु पर्याय हैं, अतः अनन्त है।४० तात्पर्य यह है कि द्रव्य और क्षेत्र की दृष्टि से जीव सान्त है और काल तथा भाव की दृष्टि से अनन्त है। ४६. जीवा णं भन्ते ! कि सासया असासया ? गोयमा ! जीवा सिय सासया सिय असासया। गोयमा दवट्ठयाए सासया, भावठ्ठयाए असासया ।। -भगवती ७।२।२७३ ४७. जे वि य खन्दया ! जाव सअन्ते जीव, तस्स वि य णं एयमठे-एवं खलु जाव दव्वओ णं एगे जीवे सअन्ते, खेतओ णं जीवे असंखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसोगाढ़े, अत्थि पुण से अन्ते, कालो णं जीवे न कयावि न आसि जाव निच्चे, नत्थि पुण से अन्ते, भावओ ण जोवे अणन्ता णाणपज्जवा, अणन्ता वेसणपज्जवा, अणन्ताचरित्तपज्जवा, अणन्ता अगुरुलहुयपज्जवा, नत्थि पुण से अन्ते । -भगवती० २।।६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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