Book Title: Dharm aur Darshan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 244
________________ महावीर के सिद्धान्त भी जीव आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी और क्रियावादी नहीं हो सकता । अतः आत्मा आदि के विषय में चिन्तन करना संवर और मोक्ष लाभ का कारण माना है । ४३ लोक शाश्वत है या प्रशाश्वत है ? इस प्रश्न के उत्तर में महावीर ने कहा जमालि ! लोक शाश्वत भी है और प्रशाश्वत भी है। त्रिकाल में एक भी ऐसा समय नहीं मिल सकता जब लोक न हो, अतएव लोक शाश्वत है । वह प्रशाश्वत भी है, क्योंकि लोक हमेशा एकरूप नहीं रहता । अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल में अवनति और उन्नति होती रहती है । कालक्रम से लोक में विविधरूपता ग्राती रहती है, अतः लोक अनित्य है, प्रशाश्वत है । ४४ लोक सान्त है या अनन्त है ? इस प्रश्न का समाधान करते हुए भगवान् महावीर ने कहा- स्कन्दक ! लोक को चार प्रकार से जाना ४३. २२६ ४४. वा आगओ अहमंसि । एवमेगेसि नो नायं भवइ - अत्थि मे आया उववाइए, नत्थि मे आया उववाइए, के अहं आसी, के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि ? "से जं पुण जाणेज्जा सहसम्मइयाए, परवागररणेणं, अन्नेसि वा अन्तिए सोच्चा । तं जहा - पुरत्थिमाओ.... एवमेगेसि नायं भवइअत्थि मे आया उववाइए जो हमाओ दिसाओ अरदिसाओ वा प्रणुसंचरइ सब्दाओ दिसाओ अणुदिसाओ, सोहं - से आयावाई, लोगावाई कम्माबाई किरियावाई | - आचारांग १ -१1१ २-३ इह आगई गई परिन्नाय अच्चेइ जाइमरणस्स वहुमगं विक्खायरए | -- श्राचारांग १।५।६ सासए लोए जमाली, जन्न कथावि णासी णो कयावि ण भवति याविण भविस्सइ, भुवि च भवइ य, भविस्सइ य धुवे जितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे । असासए लोए जमाली ! ओ ओप्पणी भवित्ता उसप्पिणी भवइ । - भगवती सूत्र ६३३।३८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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