Book Title: Dharm aur Darshan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 241
________________ २२६ धर्म और दर्शन वस्तु को अनेकान्तात्मक कहा है। जिसमें अनेक अर्थ, भाव, सामान्य विशेष. गुणपर्याय रूप से पाये जायें वह अनेकान्त है। और अनेकान्तात्मक वस्तुतत्त्व को भाषा के द्वारा कथन करना स्याद्वाद है । भगवान् ने अनेकान्त की दृष्टि से देखा और स्याद्वाद की भाषा में उसका प्रतिपादन किया। भगवद्वाणी सदा स्याद्वादमयी होती है।33 'स्यात्' यह अव्यय अनेकान्त का द्योतक है । अतः स्याद्वाद को अनेकान्तवाद भी कहते हैं।३४ सत्य का समुद्घाटन करने के लिए भगवान् ने प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अपेक्षा दृष्टि से दिया । यथा जयन्ती-भगवन् ! सोना अच्छा है या जागना ! महावीर-कितनेक जीवों का सोना अच्छा है और कितनेक जीवों का जागना अच्छा है। जयन्ती-भगवन् ! यह कैसे ? महावीर-जो जीव अधर्मी हैं, अधर्मानुग हैं, अधर्मनिष्ठ हैं, अधर्माख्यायी हैं, अधर्मप्रलोकी हैं, अधर्मप्ररञ्जन हैं, अधर्मसमाचार हैं, अधार्मिक-वत्तियुक्त हैं, वे सोते रहें, यही अच्छा है। क्योंकि वे सोते रहेंगे तो अनेक जीवों को पीड़ा नहीं देंगे। और इस प्रकार स्व, पर और उभय को अधार्मिक क्रिया में संलग्न नहीं करेंगे, अतः उनका सोना श्रेष्ठ है। किन्तु जो जीव धार्मिक हैं. धर्मानुग हैं यावत् धार्मिक वृत्ति वाले हैं उनका तो जागना ही श्रेष्ठ है । क्योंकि वे अनेक जीवों ३१. अथोऽनेकान्तः । अनेके अन्ता भावा अर्थाः सामान्यविशेषगुण पर्यायाः यस्य सोऽनेकान्तः । ३२. अनेकान्तात्मकार्थकथनं स्याद्वादः ।। -लघीयस्त्रय टोका ६२ अकलंक ३३. स्याद्वादः भगवत्प्रवचनम् । -न्यायविनिश्चय विवरण प० ३६४ ३४. स्यादित्यव्ययमनेकान्तद्योतकं, ततः स्याद्वादोऽनेकान्तवादः । -- स्याद्वाद मंजरी का० ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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