Book Title: Dharm aur Darshan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 232
________________ धर्म का प्रवेशद्वार : दान २१७ अभयदान : किसी मरते हुए प्राणी को बचाना, संकट में पड़े हुए का उद्धार करना, उसे निर्भय बनाना अभयदान है ।+ भगवान् श्री महावीर ने कहा-दानों में श्रेष्ठ अभयदान है।८ पद्मपुराणकार ने तो कहा है कि अभयदान से बढ़कर अन्य दान नहीं है। जो विद्वान् सब जीवों को अभयदान करता है वह इस संसार में निःसंदेह प्राणदाता माना जाता है ।१०० अभयदान पाकर प्राणी को जो सुख होता है वह अपूर्व है। वर्तमान युग में मानव भय से काँप रहा है। विज्ञान के प्रखरप्रकाश में भी संसार पथ-भ्रष्ट हो रहा है । समर देवता की भयानक जीभ विश्व को निगलने के लिए लपलपा रही है। तीन अरब कण्ठों की प्रार्त-वाणो है-'मानवता संकटापन्न है, शान्ति की मासूम बुलबुले छटपटा रही हैं। अतः ऐसे माई के लाल की आवश्यकता है, जो मानवों को भय से मुक्त कर अभय प्रदान करे। + जं कोरइ परिरक्खा णिच्चं मरणभयभीरुजीवाणं । तं जाण अभयदाणं सिहामणी सव्वदाणाणं । -वसुनन्दि श्रावकाचार २३८ (ख) भवत्यभयदानं तु, जीवानां वधवर्जनम् । मनो-वाक्कायैः करण-कारणाऽनुमतैरपि ॥ -त्रिषष्ठि० १११११५७ (ग) वधस्य वर्जनं तेष्वभयदानं तदुच्यते । --त्रिषष्ठि० १।१।१६६ १८. दाणाण सेट्ठ अभयप्पयाणं । -सूत्रकृतांग ०६ गा० २३ ६६. अभयः सर्वभूतानां, नास्ति दानमतः परम् ।। -पद्मपुराण १००. सर्वभूतेषु यो विद्वान्, ददात्यभयदक्षिणाम् । दाता भवति लोके सः, प्रजानां नात्र संशयः ॥ -महाभारत अनु० प्र० ११५ श्लो० १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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