Book Title: Dharm aur Darshan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 216
________________ धर्म का प्रवेशद्वार : दान २०१ जिज्ञासा प्रस्तुत की-भगवन् ! इस व्यक्ति ने पूर्वभव में क्या दान दिया था जिसके कारण इसे अतुल सम्पत्ति सम्प्राप्त हुई है ?१६ समाधान करते हुए भगवान् उसके दानसम्बन्धी पूर्वभव के सुनहरे संस्मरण सुनाते हैं। दान से जीव साता वेदनीय कर्म का बन्धन करता है । + दान के दिव्य प्रभाव से ही श्री ऋषभदेव के जीव ने और भगवान् श्री महावीर के जीव ने क्रमशः धन्ना, श्रेष्ठी के भव में१८ और नयसार के भव में१९ सर्व प्रथम सम्यक्त्व की उपलब्धि की। दान से ही शालिभद्र ने अपरिमित एवं स्वर्गीय सम्पत्ति प्राप्त की ।२° १६. किं वा दच्चा? -सुखविपाक, अ०१ १७. देखिए सुखविपाक । भूतव्रत्यनुकम्पादानंसरागसंयमादियोगः क्षान्तिः शौचमिति सदस्थय । -तत्त्वार्थ ६।१३ १८. धणसत्थवाहपोसण, जइगमणं अडवि वासठाणं च । बहु बोलीण वासे, चिंता घयदाणमासि तया ।। --आवश्यक नियुक्ति गा० १६८ (ख) आवश्यक चूणि पृ० १३३ (ग) आवश्यक मलयगिरिवृत्ति ५० १५८।१ (घ) आवश्यक-हारिभद्रीयावृत्ति प० ११५ (ङ) तदानीं सार्थवाहेन, दानस्याऽस्य प्रभावतः । __लेभे मोक्षतरोर्बीजं, बोधिबीजं सुदुर्लभम् ।। --त्रिषष्ठि शलाकापुरुष चरित्र १११।१४३ १६. दाणऽन्न पंथ नयणं अणुकंप गुरुगकहणसम्मत्त । -प्रावश्यक भाष्य, गा० २ (ख) आवश्यक नियुक्ति गा०१४३, १४४ प० १५२ (ग) त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र १०।१।३-२२ २०. त्रिषष्ठि शलाका० ।१०।१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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