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श्रमणसंस्कृति और तप
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में दक्षिण दिशा की ओर मुख कर कायोत्सर्ग करता है । द्वितीय दिन पश्चिम दिशा की ओर मुख कर कायोत्सर्ग करता है और रात्रि में उत्तर की ओर मुख कर कायोत्सर्ग करता है। भगवान् ने भद्रा के पश्चात् ही महाभद्रा प्रतिमा प्रारम्भ कर दी। उसमें चारों दिशाओं में एक दिन रात कायोत्सर्ग किया जाता है। भगवान ने चार दिन तक इसकी आराधना की। इसके पश्चात् सर्वतोभद्रा प्रतिमा का प्रारम्भ किया, इसमें दस दिन-रात लगे। दशों दिशाओं में क्रमशः अहोरात्र कायोत्सर्ग किया जाता है ! इस प्रकार भगवान् सोलह दिन-रात तक सतत ध्यानरत और उपवासी रहे ।९१
८९. महाभद्रापि तथैव, नवरमहोरात्रकायोत्सर्गरूपा अहोरात्रचतुष्टयमाना ।
-स्थानाङ्ग बृत्ति प्र० भा० पत्र ६५-२ ६०. सर्वतोभद्रा तु दशसु, दिक्षु प्रत्येकमहोरात्रकायोत्सर्गरूपा अहोरात्रदशकप्रमाणेति ।।
__ --वही, पत्र, ६५-२ ६१. तदनन्तरं सानुलष्टिग्रामं गतः । तत्थ बाहि भद्दपडिमं हितो । केरिसिया
भद्दा पडिमा ? भन्नइ, पुब्बाभिमुहो दिवसं अच्छइ, पच्छा रत्ति दाहिणहुत्तो, ततो बोए अहोरत्त अवरेणं दिवसं उत्तरेणं रत्ति, एवं छ?णं भत्तेणं निट्ठिया, तहवि न चेव पारेइ, ततो अपारितो चेव महाभद्द पडिमं ठाइ, सा पुण एवं-पुवाए दिसाए अहोरत्त, एवं चउसु वि दिसासु चत्तारि अहोरत्ता, एवमेसा दसमेण निद्विआ, तहावि न पारेइ, ताहे अपारितो चेव सव्वतोभद्दपडिमं ठाइ, सा पुण सव्वतोभद्दा एवं इंदाए अहोरत्त, एवं-अग्गेईए जम्माए नेरईए वारुणीए वायव्वाए सोमाए ईसाणीए विमलाए (तमाए) तत्थ जाई उड्ढलोइयाई दवाई ताई निज्झायइ, तमाए हेछिल्लाई, एयमेसा दसहिं दिसाहिं बावीसइमेण समप्पइ, एवं च प्रथमायां प्रतिमायां चत्तारि यामचतुष्काणि, तद्यथाएक पूर्वस्यामेकमपरस्यामेकंदक्षिणस्यामेकमुत्तरस्यां, द्वितीयस्यामष्टौ यामचतुष्काणि, तद्यथा द्वयामचतष्के पूर्वस्यामेवं यावत द्वयामचतुष्के उत्तरस्यां, तृतीयस्यां विंशतिर्यामचतुष्कानि, तद्यथा-व यामचतुष्के पूर्वस्यामेवं यावत् द्वे यामचतुष्के तमायामिति,........
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