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धर्म और दर्शन लक्ष्य नहीं है । वह छह कारणों से आहार ग्रहण करता है, उनमें द्वितीय कारण वैयावत्य है। वैयावृत्य करने के पवित्र उद्देश्य से वह आहार-ग्रहण करता है क्योंकि आहार के अभाव में शरीर वैयावृत्य करने में असमर्थ हो जाता है।
सेवा करने वालों के लिए आगमसाहित्य में विशेष विधान किये गये हैं। ____कल्पसूत्र के समाचारी प्रकरण में एक विधान है कि वर्षावासस्थित श्रमण को गृहस्थ के घर पर एक बार जाना कल्पता है । पुनः पुनः गृहस्थ के घर जाना नहीं कलाता। किन्तु प्राचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, बालक, रुग्ण अादि श्रमणों की सेवा का प्रसंग उपस्थित होने पर सेवानिष्ठ मुनि को अनेकवार गृहस्थ के यहाँ भिक्षा के लिए जाना कल्पता है । १६
श्रमण संस्कृति के श्रमणों के लिए प्राचारांग", बृहत्कल्प और
१५. वेयण वेयावच्चे, इरियट्ठाए संजमट्ठाए । तह पाणवत्तियाए, छट्ठ पुण धम्मचिन्ताए ।
-उत्तराध्ययन २६३ १६. वासावासं पज्जोसवियाण निच्चभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगं
गोयरकालं गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पवेसित्तए वा, न ऽन्नत्य आयरियवेयावच्चेण वा उवज्झायवेयावच्चेण, तवस्सिगिलाणवे० खुडएणं वा अवंजणजायएणं ।
-कल्पसूत्र सू० २४० पृ० ७१ पुण्यविजय जो सम्पादित अब्भुगते खलु वासावासे अभिपवु? बहवे पाणा बहुबीया संभूया बहवे बीया अरगुन्भिन्ना अंतरा से मग्गा बहुपाणा, बहुबीया, जाव ससंताणगा अणोक्कंता पंथा णो विण्णाया मग्गा सेवं णच्चा णो गामाणुगामं दुइज्जेज्जा तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिएज्जा ।
--प्राचारांग १८. नो कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथीणं वा वासावासासु चरित्तए ।
-बृहत्कल्प उद्दे० १, सू० ३६-३७
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