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केवल एक ही मार्ग है, जिसका स्मरण बुद्धपुरुष हमें अनेक ढंग से करवाते हैं, कभी सीधा-सीधा झकझोर कर तो कभी मीठी-मीठी गाथाएं सुना कर-और वह मार्ग है ध्यान।
ओशो से किसी ने पूछा है-ध्यान क्या है?
ओशो कहते हैं-ध्यान है पर्दा हटाने की कला। और यह पर्दा बाहर नहीं है, यह पर्दा तुम्हारे भीतर पड़ा है, तुम्हारे अंतस्तल पर पड़ा है। ध्यान है—पर्दा हटाना। पर्दा बुना है विचारों से। विचार के ताने-बानों से पर्दा बुना है। अच्छे विचार, बुरे विचार, इनके ताने-बाने से पर्दा बुना है। जैसे-जैसे तुम विचारों के पार झांकने लगो, या विचारों को ठहराने में सफल हो जाओ, या विचारों को हटाने में सफल हो जाओ, वैसे ही ध्यान घट जाएगा। निर्विचार दशा का नाम ध्यान है। ध्यान का अर्थ है-ऐसी कोई संधि भीतर जब तुम तो हो, जगत तो है और दोनों के बीच में विचार का पर्दा नहीं है।
ओशो तथा समस्त बुद्धों द्वारा दी गयी ध्यान की यह परिभाषा कंठस्थ करके पंडित बनने के लिए नहीं है। यह तो एक संकेत है कि ध्यान में संलग्न होना है, ध्यान में डूबना है। तब निर्विचार चैतन्य कोई शब्द मात्र नहीं होंगे-वह एक जीवंत अनुभूति होगी।
ओशो के ये दस प्रवचन बुद्धकालीन अनेक सुंदर मीठी गाथाओं तथा साधकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के माध्यम से पुनः-पुनः ध्यान का ही स्मरण दिलाते हैं, सहज ध्यान की कला से परिचित होना सिखाते हैं। ओशो हमें इस संबंध में ध्यान के प्रति गुरुगंभीर होने से सावधान करते हैं और कहते हैं-नाचो, गाओ! नाचने और गाने में तुम लीन हो जाओ। अचानक तुम पाओगे हवा के झोंके की तरह ध्यान आया, तुम्हें नहला गया, तुम्हारा रो-रोआं पुलकित कर गया, ताज़ा कर गया। धीरे-धीरे तुम समझने लगोगे इस कला को। ध्यान का कोई विज्ञान नहीं है-कला है। धीरे-धीरे तुम समझने लगोगे कि किन घड़ियों में ध्यान घटता है, उन घड़ियों में मैं कैसे अपने को खुला छोड़ दूं। जैसे ही तुम इतनी सी बात सीख गए, तुम्हारे हाथ में कुंजी आ गयी। __एक और उदाहरण ओशो देते हैं। इस प्रयोग को समझना बहुत उपयोगी होगा। कभी रात नींद खुल गयी है (विश्वभर में अक्सर लोगों को नींद नहीं आती और वे बहुत परेशान होते हैं), बिस्तर पर पड़े हो, अनिद्रा के लिए परेशान मत होओ, इस मौके को मत खोओ, यह शुभ घड़ी है। सारा जगत सोया है, पत्नी-बच्चे सब सोए हैं, तो मौका मिल गया है। बैठ जाओ अपने बिस्तर में ही, रात के सन्नाटे को सुनो। ये बोलते हुए झींगुर, यह रात की चुप्पी, यह सारा जगत सोया हुआ, सारा कोलाहल बंद, जरा सुन लो इसे शांति से। यह शांति तुम्हारे भीतर की शांति को झनकारेगी। यह बाहर गूंजती हुई शांति तुम्हारे भीतर हृदय में भी गूंज पैदा करेगी, प्रतिध्वनि पैदा