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चीन में एक महान कवि हुआ है : चांग चिंग। उसके संबंध में कहा जाता है कि वह बड़ा सौंदर्य- पारखी था और वह एक अदभुत दार्शनिक था सौंदर्य का । उसने सौंदर्यशास्त्र पर, 'एस्थेटिक्स' पर बहुमूल्य ग्रंथ लिखे हैं । लेकिन इन्हें लिखने पूर्व उसने बहुत बौद्धिक श्रम किया, बीस साल तक वह ग्रंथों में डूबा रहा, सौंदर्य क्या है इसकी तलाश करता रहा।
एक रात, आधी रात, वह किताबों में डूबा - डूबा उठा, पर्दा सरकाया, द्वार के बाहर झांका – पूरा चांद आकाश में था । चिनार के ऊंचे दरख्त जैसे मध्यस्थ खड़े 'थे। मंद समीर बहती थी । और समीर पर सवार फूलों की गंध उसके नासापुटों तक आयी। कोई एक पक्षी, जलपक्षी उस सन्नाटे में जोर से चीखा, और उस जलपक्षी की चीख में कुछ घटित हुआ - कुछ घट गया ! चांग चिंग अपने आप से बोला, 'कैसी भूल में भरा था ! कितनी भूल में मैं था! पर्दा उठाओ और जगत को देखो ।' बीस साल किताबों में से उसे सौंदर्य का पता न चला। पर्दा हटाया और सौंदर्य सामने खड़ा था, साक्षात !
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ऐसी ही एक घटना महाकवि रवींद्रनाथ के जीवन में भी घटित हुई थी। ओशो ने उस घटना का अपने प्रवचनों में उल्लेख किया है।
जीवन में सौंदर्य, ध्यान अथवा प्रेम पुस्तकों के माध्यम से नहीं जाना जा - उसका स्वयं सीधा साक्षात्कार करना होता है । इस सीधे साक्षात्कार क
सकता
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